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ज्ञान प्राप्ति के द्वारा जगे संयम की चेतना - युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण

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जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय का 15 वां दीक्षांत समारोह

समारोह में केंद्रीय मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान की गरिमामय उपस्थिति

- कुलाधिपति माननीय श्री अर्जुनराम मेघवाल ने वर्चुअल माध्यम से किया संबोधित

- उपाधि धारकों ने स्वीकार की ड्रग्स एवं शराब के व्यसन से दूर रहने की प्रतिज्ञा


 वेसू, सूरत।अपनी पावन प्रज्ञा से जन मानस के अज्ञान तमस को हरने वाले युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य में जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय, लाडनूं का 15 वां दीक्षांत समारोह आयोजित हुआ। विश्वविद्यालय के आध्यात्मिक अनुशास्ता की पावन सन्निधि में विद्यार्थियों को डिग्री प्रदान करने हेतु इस मौके पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रदान विशेष रूप से उपस्थित थे। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश श्री दिनेश माहेश्वरी की गरिमामय उपस्थिति थी। विश्व विद्यालय द्वारा श्री दिनेश माहेश्वरी को डी.लिट की मानद उपाधि प्रदान की गई।

संस्थान प्रार्थना से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। पूज्य गुरूदेव ने नमस्कार महामंत्रोच्चार कराया। जैविभा संस्थान के कुलपति श्री बछराज दूगड़ ने संस्थान का परिचय प्रस्तुत किया। वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के जरिए जैविभा के कुलाधिपति माननीय श्री अर्जुनराम मेघवाल ने अपने विचार व्यक्त किए। तत्पश्चात विभिन्न विभागों के अनेक विद्यार्थियों को डिग्री प्रदान की गई।

केंद्रीय मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि मेरा सौभाग्य है मुझे इस दीक्षांत समारोह से जुड़ने का अवसर प्राप्त हुआ। जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय विश्व का शायद पहला मोबिलिटी विश्वविद्यालय है। मैं आज खुद को बहुत प्रसन्न महसूस कर रहा हूं। मैं अनेक विश्वविद्यालयों को जनता हूं किंतु यह संस्थान जीवन मूल्यों को सिखाता है। 

परमपूज्य अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने उपाधि धारकों को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा – व्यक्ति ज्ञान का अर्जन करे ताकि वह श्रुत–ज्ञान का अर्जन कर सके। ज्ञान प्राप करे जिससे मन की चंचलता पर अंकुश लगे। मन जितना एकाग्र होगा चेतना उतनी ही अच्छे स्थिति में हो सकती है। साथ ही ज्ञान प्राप्त कर व्यक्ति अपने आप को सदाचार में स्थापित करे। धर्मानुसार आचरण करे। व्यक्ति के पास ज्ञान होता है तो स्वयं के साथ वह दूसरों का भी भला कर सकता है। हमारे जीवन, समाज और राष्ट्र की अनेक समस्याओं के मूल में असंयम होता है। मन , वचन, वाणी पर नियंत्रण नहीं है तो अनेक प्रकार की समस्याएं हो सकती है। वर्तमान में उपभोक्तावादी युग है। भोगोपभोग का परिमाण हो। आवश्यकताओं और इच्छाओं के मध्य अंतर को व्यक्ति पहचाने। 

गुरूदेव ने आगे बताया कि भौतिक पदार्थों के प्रति अवांछनीय आकर्षण होता है वह भी असंयम है। विद्यार्थी पढ़ते है उनका ज्ञान बढ़ता है, साथ में संयम की चेतना भी आए। आचार्य श्री तुलसी जो जैविभा के प्रथम अनुशास्ता थे उन्होंने संयम का आंदोलन चलाया - अणुव्रत आंदोलन। अणुव्रत का प्रसिद्ध घोष है 'संयम ही जीवन है'। आचार्य श्री तुलसी एक संत पुरुष थे और उनका राजनीति के क्षेत्र में भी प्रभाव रहा। देश को भौतिक, आर्थिक, शैक्षिक विकास भी चाहिए साथ ही देश में नैतिकता का, आध्यात्मिकता का भी विकास हो। 

आचार्य श्री के आव्हान से दीक्षांत समारोह में उपस्थित सभी उपाधि धारकों ने आजीवन शराब एवं ड्रग्स के नशे से दूर रहने की प्रतिज्ञा स्वीकार की।

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