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दु:ख पाप के कारण है, किसी व्यक्ति के कारण नहीं है : आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा.

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सूरत। शहर के पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन पाल में युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में चातुमार्स अंतिम सप्ताह में प्रवेश हो चुका है। आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. ने प्रवचन में सोमवार 11 नवंबर को कहा कि काल का प्रवाह  अखंड है। इसमें किसी भी प्रकार का अवरोध नहीं है। उत्तराध्ययन सूत्र का दसवा अध्याय बड़ा महत्वपूर्ण है। दो शब्द बड़े महत्वपूर्ण है एक उपयोग और एक उपासना। दोनों में उप शब्दों का प्रयोग है। एक में योग है एक में आसन है। उपयोग महत्वपूर्ण या उपासना? संसार के क्षेत्र में उपयोग महत्वपूर्ण है और अध्यात्म के क्षेत्र में उपासना महत्वपूर्ण है। उपयोग और उपासना दोनों को अपने जीवन में उतार ले। समय महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण रूचि, परिणाम है। नजर हमेशा परिणाम, भविष्य पर चाहिए। दु:ख पाप के कारण है, किसी व्यक्ति के कारण नहीं है। चाहे वह शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक या किसी भी प्रकार की पीड़ा हो। दु:ख पाप के कारण है ऐसा चिंतन समाधि देता है। सुख धर्म के कारण है ऐसा चिंतन समर्पण देता है। एकत्व भाव के बिना समर्पण पैदा नहीं होता। धर्म के क्षेत्र में एकत्व भाव चाहिए, संसार के क्षेत्र में अन्यत्व भाव चाहिए। एकत्व की भावना जहां है वह समाज भी प्रगति करता है। सारे ग्रह हमारे भीतर है। हमारी मुस्कराहट हमारा चंद्र है, हमारी बुद्धि परोपकारी में लगती है तो समझो बुध प्रवेश कर गया। गुरू के प्रति जब समर्पित हो जाते है तो गुरू ग्रह हमारे अंदर तेजस्विता के साथ प्रकट हो जाता है। जब मंगल भाव रखते हो तो मंगल हमारे अंदर प्रकट हो जाता है। जब दूसरों के लिए बाधा बनते है तो समझो शनि हो गए। इस छोटीसी जिंदगी को हमें सार्थक करना है। आज जालोर विधानसभा क्षेत्र विधायक जोगेश्वर गर्ग ने आचार्यश्री का आशीर्वाद लिया। पाल संघ द्वारा मेहमानों का बहुमान किया गया।

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