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सच्चाई में हो धृति : अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमण

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 -संस्कार निर्माण शिविर व सघन साधना शिविर के शिविरार्थियों को मिला विशेष आशीष

-बीदासर संघ व कोलकाता के संघ के लोगों ने दी अपनी भावनाओं को प्रस्तुति

वेसु, सूरत।युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलवार को महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि सत्य एक शब्द है। इसके अनेक अर्थ बताए गए हैं। सत्य एक अर्थ है सत्, तथ्य, सार्वभौम नियम आदि-आदि। अस्तित्व का वाचक श्री सत् तथा यथार्थ भी सत्य से जुड़ा हुआ है। सरलता और ऋजुता भी सत्य से जुड़ी हुई है। आदमी सामान्य बोलचाल की भाषा में सत्य को यथार्थ के रूप में बोलने को लेकर करते हैं। सच्चाई के लिए सरलता का होना भी अपेक्षित होता है। झूठ और कपट का जोड़ा है तो सच्चाई और सरलता भी एक युगल है। इसलिए सरलता की आराधना आवश्यक है, यदि सच्चाई की साधना करनी है तो। 

जो मन में है, वह वचन में हो और वही आचरण में भी हो। मन, वचन और शरीर की चेष्टा की एकता महात्मा का एक लक्षण है। मन में कुछ, वाणी में कुछ और शरीर की चेष्टा में कुछ हो तो वह दुरात्मा कहा जाता है। सच्चाई के संदर्भ में मन, वचन और काया की एकता का होना यथा अपेक्षा आवश्यक होता है। जो आदमी साधु बन जाता है, वह तो तीन करण तीन योग से मृषावाद का प्रत्याख्यान कर देता है। साधु के मृषावाद का त्याग होता है, लेकिन प्रत्येक सच बोलना ही हो, ऐसा आवश्यक नहीं। 

साधु कानों से बहुत सुनता है और बहुत कुछ देखता भी है, किन्तु सारा देखा और सुना हुआ बोलना उचित नहीं है। जितना उचित हो उतना ही बोलना साधु के लिए आवश्यक होता है। इसलिए कहा गया कि सच्चाई में धृति रखने का प्रयास करना चाहिए। सच्चाई में स्थिरता रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को ऐसा प्रयास करना चाहिए कि कठिनाई भले झेल लूंगा, लेकिन झूठ नहीं बोलूंगा। ऐसी भावना वाला तो सामान्य आदमी भी महापुरुष के समान हो जाता है। 

संस्कार निर्माण शिविर और सघन साधना शिविर के शिविरार्थी हैं। वे भी ध्यान दें कि जहां तक हो सके, थोड़ी तकलीफ सह लें, लेकिन झूठ बोलने से बचने का प्रयास करना चाहिए। सघन साधना शिविर के संभागियों में तो इस निष्ठा का ज्यादा विकास हो जाना चाहिए। इस शिविर के बाद भी झूठ बोलने का प्रयास न हो। सच्चाई भी एक संस्कार है। संस्कार निर्माण शिविर के बच्चे भी सच्चाई की भावनाओं को आत्मसात करने का प्रयास करें। सच्चाई के रूप में एक अच्छा संस्कार जीवन में आ जाए तो जीवन का कल्याण हो सकता है। 

एक कथानक के माध्यम से आचार्यश्री ने समुपस्थित शिविरार्थियों को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कि सच्चाई में धृति करने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त जैन विश्व भारती द्वारा शासनश्री साध्वी कंचनप्रभाजी की आत्मकथा ‘जीवन की उजली भोर’ को आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने मंगल आशीष प्रदान की। 

आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित बीदासर के ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति दी। तेरापंथी सभा-बीदासर के अध्यक्ष श्री संपतमल बैद, तेरापंथ युवक परिषद के मंत्री रितिक बोथरा, श्री विजय चोरड़िया, अमृतवाणी के पूर्व अध्यक्ष श्री रूपचंद दूगड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इसके उपरान्त बीदासर के श्रावक-श्राविकाओं ने सामूहित गीत का संगान किया। कोलकाता से भी पहुंचे बृहत् संघ ने गीत का संगान करते हुए अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। 

 

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