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आशा व छंद को छोड़, परम सुख प्राप्ति की ओर हो गति : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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-आचार्यश्री ने जनता को लोभ, तृष्णा और कामना को छोड़ने की दी पावन प्रेरणा

-तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम द्वारा गौरव सम्मान समारोह का हुआ आयोजन

 सुरत।डायमण्ड सिटी सूरत में वर्ष 2024 का चातुर्मास करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु देश-विदेश से उपस्थित हो रहे हैं और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं। दूसरी ओर नित नए कार्यक्रमों के साथ तेरापंथ धर्मसंघ के विभिन्न संस्थाओं के अधिवेशन का दौर भी जारी है। शुक्रवार को आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के साथ तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम द्वारा टीपीएफ गौरव सम्मान समारोह का आयोजन भी किया गया। 

जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के भीतर आशा, लोभ, तृष्णा आदि की वृत्ति होती है। इन्द्रियों सुखों में वर्तन करने की मनोवृत्ति भी हो सकती है। मानव के भीतर अनादिकाल से मोहनीय कर्म है। जो वीतराग बन जाते हैं, उनमें लोभ की चेतना नहीं रहती। सामान्य लोगों में लोभ की वृत्ति रहती है। किसी में ज्यादा और किसी में कम हो सकता है। लोभ के कारण आदमी के मन में गुस्सा और निराशा भी हो सकती है। कामना और दुःख दोनों का संबंध है। 

दुनिया में दुःख है तो दुःख मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त है। दुःख का कारण लोभ, कषाय, कामना, आश्रव है तो संवर और निर्जरा दुःख मुक्ति का मार्ग है। आदमी को अपने जीवन में भोगों की अभिलाषा का परित्याग का प्रयास करना चाहिए। इन्द्रियों के सुख को छोड़कर आदमी परम सुख को प्राप्त कर सकता है। अलोभ की चेतना को पुष्ट करने के लिए संतोष की भावना का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। आयारो में आशा और छंद को छोड़कर अलोभ और संतोष की अनुप्रेक्षा का प्रयास हो। आदमी जितनी कामना करता है, उसके साथ दुःख का भी आगमन होता है। जो असंतोषी होता है, वह मूढ़ होता है, पंडित, साधक लोग संतोष को धारण करने वाले होते हैं। 

भौतिक दुनिया में पैसे का बड़ा प्रभाव होता है। आवश्यकताओं की पूर्ति और अनुगमन करने वाले लोग भी बन जाते हैं। जीवन में इच्छाओं का परिमाण करने का प्रयास करना चाहिए। रहन-सहन में सादगी रहे। आशा और छन्द को छोड़कर आदमी परम सुख प्राप्ति की दिशा में गति कर सकता है। 

अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के अध्यक्ष श्री अविनाश नाहर अनेक पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं के नामों की घोषणा की। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आज तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के द्वारा गौरव सम्मान समारोह का समायोजन किया गया। यह सम्मान श्री विजय कोठारी को प्रदान किया गया। टीपीएफ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री नवीन चोरड़िया व पुरस्कारप्राप्तकर्ता श्री कोठारी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। इस समारोह का संचालन तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के महामंत्री श्री विमल शाह ने किया।  

 

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