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सूरत:भक्ति के नव लक्षण से मनुष्य भक्ति का पादुर्भाव-पंडित संदीप महाराज

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सूरत।अगासी माता मंदिर, स्वामीनारायण मंदिर के पास, सरदार पुल के नीचे, अडाजन सूरत में आयोजित शिव महापुराण कथा के आयोजन में चौथे दिन की कथा में बुधवार को पंडित संदीप महाराज ने शिव महापुराण कथा में बताया कि भगवान शिव से सती द्वारा भक्ति विषयक प्रश्न करने पर भोलेनाथ के द्वारा नवदा भक्ति का वर्णन किया और बताया कि श्रवण, कीर्तन, भगवान का स्मरण, पाद सेवन, अर्चन, वंदन, सख्य, भगवान के प्रति सखा भाव, आत्म निवेदन ये भक्ति के नव लक्षण हैं। इन नव लक्षणों से मनुष्य में भक्ति का प्रादुर्भाव होता है। भगवान ने सती के साथ इन शर्तों पर विवाह किया था कि मेरी भक्ति में अविश्वास नही करना और सती ने भी अपने पिता दक्ष से कहा था कि आप मेरा अपमान नही करोगे। विवाह के बाद शिव और सती भ्रमण के लिए निकले तब रास्ते में भगवान राम, लक्ष्मण दण्डकारण्य में वनवासी रुप मे विचरण करते मिले तो शिवजी ने उन्हें प्रणाम किया तब उसी समय सती को अविश्वास हो गया कि सारी पृथ्वी के देवता महादेव है फिर भी रामजी को प्रणाम क्यों कर रहे हैं। सती का यह व्यवहार शिवजी को अच्छा नही लगा। उधर सती ने सीता बनकर रामजी की परीक्षा ली तब तो मन ही मन शिवजी ने सती का त्याग कर दिया। राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया जिसमे सभी को बुलाया मगर भगवान शंकरजी को न तो निमंत्रण दिया और न ही स्थान दिया। जब सती को यज्ञ का पता चला तो शिवजी के मना करने पर भी वह वहाँ गई। सती ने शिवजी का स्थान नही देख कर और अपना निरादर देख कर अपने शरीर को योगाग्नि के द्वारा यज्ञकुण्ड में भस्म कर लिया। शिवजी को इस बात का पता चला तो अपने बाल के द्वारा वीरभद्र को उत्त्पन्न कर यज्ञ का विध्वंस करवा दिया और दक्ष प्रजापति का सिर काट डाला। ब्रह्मा विष्णु सहित सारे देवताओं ने प्रार्थना की की तब भगवान शिव स्वयं आकर यज्ञ सम्पन्न कराया। दक्ष के सिर पर बकरे का सिर लगा कर दक्ष को जीवन दान दिया। इसके बाद राजा हिमाचल और रानी मैना की पुत्री माता पार्वती के साथ शिवजी का विवाह धूमधाम से सम्पन्न हुआ।

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