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क्रोध हमेशा हमारे भविष्य को नष्ट करता है:आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी

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     सूरत। शहर के पाल में श्री कुशल कांति खरतरगच्छ जैन श्री संघ पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन में युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म. सा. ने शनिवार 7 सितंबर को पर्वाधिराज पर्युषण के आठवां दिन कल्पसूत्र वांचन पर प्रवचन करते हुए कहा कि  उर्जा से परिपूर्ण जीवन का अनूठा उपहार उपस्थित हुआ है। परम शांति देनेवाला, साधना के क्षेत्र में उंचाई प्रदान करनेवाला पर्वाधिराज पर्यूषण का आज आठवा दिन संवत्सरी महापर्व है। परमात्मा की मूल वाणी बारसा सूत्र का एक एक अक्षर अपने आप में मंत्र है। उन्होंने क्रोध और वैर में अंतर बताते हुए कहा कि क्रोध वह है, जो आया और गया। वैर वह जो क्रोध आने के बाद स्टोर कर लिया वह वैर है। भगवंतों ने क्रोध को अग्नि कहा है।  पंचतत्वों में आग सबसे खतरनाक तत्व है। पानी भी नुकसान पहुंचाता है, आग भी नुकसान पहुंचाता है, लेकिन दोनों में अंतर है। पानी से कागज, लकड़ी गीली होती है, लेकिन आग से सभी भ्रम हो जाएंगे। संवत्सरी महापर्व शिखर पर ध्वजा लहराने का दिन है। स्थितियां विपरित भी हो सकती है। न्याय की भाषा में कभी नहीं जाना चाहिए। भविष्य की भाषा समझें। क्रोध हमेशा हमारे भविष्य को नष्ट करता है। संबंधों का नष्ट करता है। कभी भी विवाद नहीं करना चाहिए। विवाद कभी हो जाए तो विरोध तक नहीं पहुंचने देना चाहिए। विरोध तक सीमित है तो विग्रह नहीं करना चाहिए। और विभाजन नहीं होने देना चाहिए। चिंता शरीर की नहीं आत्मा की करो। आत्मा को शुद्ध बनाओ। जिंदगी में कभी भी किसी का भरोसा नहीं तोड़ना चाहिए। दोपहर को प्रतिक्रमण हुआ। आचार्यश्री ने संत मंडल, साध्वी मंडल की ओर से सकल संघ से क्षमा याचना की। संघ के अध्यक्ष ओमप्रकाश मंडोवरा और युवा परिषद के अध्यक्ष मनोज देसाई ने विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि संवत्सरी महापर्व कल्पसूत्र वांचन में भूपेंद्र चिपड़ प्रतातगड़ ने पहले कल्पसूत्र और आज बारसा सूत्र भी वैराने का लाभ लिया। श्रावकों ने पूजा विधान का लाभ लिया।

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