IMG-LOGO
Share:

वित्त ही नहीं, वृत्त की रक्षा का हो प्रयास : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

IMG

-पदार्थों के अनावश्यक संग्रह से बचने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित

-तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के त्रिदिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन का हुआ शुभारम्भ

सूरत।डायमण्ड सिटी सूरत के वेसु में स्थित भगवान महावीर युनिवर्सिटि परिसर में बने संयम विहार में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अध्यात्म जगत के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी सैंकड़ों चारित्रात्माओं के साथ चतुर्मास कर रहे हैं। आचार्यश्री के श्रीमुख से निरंतर प्रवाहित होने वाली अध्यात्म की गंगा में श्रद्धालु गोते लगाकर निहाल हो रहे हैं। साथ ही सभा-संस्थाओं के अधिवेशन आदि का प्रसंग भी निरंतर जारी है। देश के विभिन्न हिस्सों से लोग ससंघ पहुंचकर दर्शन-सेवा का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। शनिवार को आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के 17वें राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन हुआ। 

महावीर समवसरण में अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से उपस्थित जनमेदिनी को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आगम में एक सूक्त दिया गया है कि जिससे होता है, उससे नहीं भी होता है। मानव जैसे किसी पदार्थ, वस्तु आदि का संग्रह करता है कि इससे मुझे सुख की प्राप्ति होगी, लेकिन जिन पदार्थों के भोग से आदमी सुख पाना चाहता है, उनसे सुख मिले अथवा नहीं भी मिल सकता है। जैसे बताया गया कि किसी आदमी के घर में ताजा मिठाइयां बनाई गयी हैं, आदमी सोचता है कि कई महीनों तक ये मिठाइयां काम आएंगी, लेकिन कुछ ही समय बाद आदमी का जांच हुआ तो डॉक्टर से सुगर हाई बताकर मिठाई खाना बंद करा दिया। इस प्रकार जो पदार्थ पहले खाने से सुख मिलता था, वह अब सुख नहीं दे सकता। इस प्रकार अनेक ऐसे कारण हैं, जिनसे सुख मिल सकता है, उनसे सुख नहीं भी मिल सकता है। 

किसी समय आदमी कमाई कर बहुत धनाढ्य हो जाता है तो कभी हानि होने अथवा गलत संगत में धन का नाश हो जाता है और आदमी को अपना जीवन ढंग से जीना भी मुश्किल हो सकता है। इसलिए आदमी को पदार्थों के प्रति ज्यादा आसक्ति नहीं रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को पदार्थों का अत्यधिक संग्रह से बचने का प्रयास करना चाहिए। वहीं पदार्थ कभी आदमी के जीवन को दुःखी बनाने वाली भी बन सकती हैं। इसलिए आदमी को अत्यधिक मोहग्रस्त होकर अनावश्यक पदार्थों के संग्रह से बचने का प्रयास करना चाहिए। इसलिए मानव को अर्थ के अर्जन में प्रमाणिकता रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को ईमानदारी, नैतिकता के साथ अर्थ के अर्जन का प्रयास करना चाहिए। आदमी को वित्त नहीं वृत्त की यत्नापूर्वक रक्षा करने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ जीवन में वित्त (धन) ही नहीं, वृत्त (चरित्र) की सुरक्षा भी यत्नापूर्वक करने का प्रयास होना चाहिए। जितना संभव हो सके आदमी को अपने चरित्र की रक्षा करने का प्रयास करना चाहिए। 

मंगल प्रवचन के उपरान्त अनेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया। आज आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के 17वें राष्ट्रीय अधिवेशन का शुभारम्भ हुआ। इस संदर्भ में मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान मंचीय उपक्रम रहा। इस संदर्भ में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि रजनीशकुमारजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के निवर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री पंकज ओस्तवाल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। टीपीएफ के मुख्य ट्रस्टी श्री संजय बाफना ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने आशीष प्रदान करते हुए कहा कि एकता अपने आप में एक शक्ति होती है। तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम बहुत महत्त्वपूर्ण संस्था है। यह विकासशील संगठन लग रहा है। बुद्धिमत्ता के साथ-साथ धर्म से भी जुड़ा हुआ है। इसमें खूब विकास होता रहे। कार्यक्रम का संचालन आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि रजनीशकुमारजी ने किया।   

 

Leave a Comment

Latest Articles

विद्रोही आवाज़
hello विद्रोही आवाज़

Slot Gacor

Slot Gacor

Situs Slot Gacor

Situs Pulsa

Slot Deposit Pulsa Tanpa Potongan

Slot Gacor

Situs Slot Gacor

Situs Slot Gacor

Login Slot

Situs Slot Gacor