-12 किलोमीटर का विहार कर गोकुलवाड़ी में पधारे तेरापंथ के गणराज
-स्थानीय श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का किया भावभीना अभिनंदन
गोकुलवाडी, छत्रपति संभाजीनगर।जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ महाराष्ट्र की धरा को अपने आध्यात्मिक आलोक से आलोकित कर रहे हैं। इस दौरान तेरापंथ धर्मसंघ के सभी महनीय आयोजन भी महाराष्ट्र की धरा पर ही सम्पन्न हुए हैं। पंचमासिक चतुर्मास, कई दीक्षा समारोह, वर्धमान महोत्सव, मर्यादा महोत्सव, अक्षय तृतीया, अब वर्तमान आचार्यश्री का जन्मोत्सव और पट्टोत्सव भी महाराष्ट्र की धरा पर ही आयोजित है। आचार्यश्री की असीम कृपा को प्राप्त कर महाराष्ट्र के कोने-कोने में प्रवासित श्रद्धालु हर्षविभोर बने हुए हैं। इसके साथ ही आचार्यश्री की जनकल्याणकारी व्याख्यान जन-जन को प्रभावित कर रहा है। ऐसे में जहां तेरापंथी परिवार नहीं भी हैं, वहां भी आचार्यश्री का अन्य समाज द्वारा उत्साह के साथ स्वागत-अभिनंदन आचार्यश्री महाश्रमणजी को महामानव की उपमा को सार्थक बना रहे हैं।
ऐसे महामानव आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर में गतिमान हैं। मंगलवार को प्रातः की मंगल बेला में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गोकुलवाडी की ओर प्रस्थान किया। जन-जन को अपने आशीष से आच्छादित करते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। आसमान में चढ़ता सूर्य मौसम को गर्म बना रहा था, किन्तु समता के साधक आचार्यश्री निरंतर गतिमान थे। लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर गोकुलवाडी में स्थित नवकार गणेश तीर्थ में पधारे।
मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान समुपस्थित श्रद्धालु जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आदमी दुःख से मुक्त रहना चाहता है। आदमी के जीवन में सुख और शांति रहे, ऐसी कामना होती है। मनुष्य ही क्या, कोई भी प्राणी दुःख से डरता है और सुख की कामना करता है। सर्वदुःख मुक्ति को आदमी को अपना साध्य बनाने का प्रयास करना चाहिए। इसे प्राप्त करने के लिए आदमी को अपने आप का निग्रह अर्थात् स्वयं का संयम करने का प्रयास करना चाहिए। सर्वदुःख मुक्ति रूपी साध्य को प्राप्त करने का साधन है अपने से अपना अनुशासन अर्थात् आत्मानुशासन रखने का प्रयास करना चाहिए।
आदमी स्वयं पर अनुशासन रख ले, संयम को साध ले तो वह लक्ष्य की ओर आगे बढ़ सकता है। पाप ही दुःख है। आश्रव के कारण पाप लगता है, कर्मों का बंध होता है जो दुःख देने वाले होते हैं। संवर और निर्जरा सर्व दुःख मुक्ति का उपाय है। इसके लिए आदमी स्वयं का निग्रह करे तो संवर हो जाएगा और तपस्या होगी तो कर्मों की निर्जरा भी हो जाएगी। जब संवर और निर्जरा हो जाएगी तो मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। इस प्रकार आत्म निग्रह को ही सर्व दुःख मुक्ति का मार्ग बताया गया है।
श्री सुभाष नाहर व स्थान से जुड़े हुए लोगों ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। समणसंघ की समणीजी ने भी आचार्यश्री के स्वागत में अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। जालना तेरापंथ महिला मण्डल ने गीत का संगान किया।