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अनेकता में एकता को खोजे : आचार्य महाश्रमण

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– "जैनम जयतु शासनम" कार्यक्रम का भव्य समायोजन

– जैन शासन की त्रिवेणी संगम का अनोखा नजारा देख 'हम सब एक हैं' के नारों से गूंजा वातावरण

 मंगलवार, पिंपरी–चिंचवड़, पुणे। मंगलवार का दिन पिंपरी चिंचवड़ वासियों के लिए एक अनोखा अवसर लेकर आया। यह ऐतिहासिक अवसर का भगवान महावीर के 2550 वें निर्वाण कल्याणक वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित हुए "जैनम जयतु शासनम" कार्यक्रम का। एलप्रो इंटरनेशनल स्कूल में युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य में आज जैन एकता का अनूठा नजारा देखने को मिला जब स्थानकवासी आम्नाय के उपाध्याय प्रवीण ऋषि जी एवं मूर्तिपूजक संप्रदाय से मुनि पुण्यध्यान विजय जी आदि मुनि वृंद इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए और भगवान महावीर एवं जैन एकता के संदर्भ में अपने प्रेरक विचारों की अभिव्यक्ति दी। आचार्य श्री के सान्निध्य में इस अद्भुत नजारे को देख धर्म सभा हम सब एक है के नारों से गूंज उठी। चार दिवसीय प्रवास का अंतिम दिन अणुव्रत समिति पिंपरी चिंचवड़ द्वारा जैन विद्या प्रसारक मंडल एवं एलप्रो इंटरनेशनल स्कूल के साथ एलीवेट व डिजिटल डिटॉक्स कार्यक्रम का भी आयोजन हुआ जिसमें आचार्यश्री एवं वक्ताओं द्वारा ड्रग्स निषेध एवं डिजिटल उपयोग के बारे में जागरूकता हेतु प्रेरित किया गया।

तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के मन में मंगल की कामना रहती है। वह स्वयं का भी मंगल चाहता है और दूसरों के प्रति भी मंगलकामना अभिव्यक्त करता है। मंगल के लिए कुछ बाह्य प्रयोग भी किया जाता है। शुभ मुहूर्त देखकर कोई कार्य होता है, कुछ पदार्थ भी मंगल के रूप में उपयोग होता है, किन्तु यह सभी प्रयास छोटे हैं। शास्त्र में बताया गया कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है। धर्म से बड़ा कोई मंगल नहीं हो सकता। अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म को सर्वोत्कृष्ट मंगल कहा गया है। 

आज जैन शासन की श्वेताम्बर परंपरा के तीन आम्नाय मूर्तिपूजक, स्थानकवासी व तेरापंथ का मानों त्रिवेणी संगम हो रहा है। कन्याकुमारी में जिस प्रकार लोग तीन सागरों का संगम देखने के लिए जाते होंगे, आज यहां भी त्रिवेणी संगम देखा जा सकता है। आचार क्रिया की भिन्नता तथा सिद्धांतों की भिन्नता के बाद भी जहां धर्म, अध्यात्म की बात है, वहां एकता बनी रहे। अनेकता में भी एकता को खोजने का प्रयास करना चाहिए। भिन्न देशों में पैदा हुए, भिन्न-भिन्न आहार से पुष्ट होने के बाद भी जिन शासन के मुनि भाई के समान हो जाते हैं। सभी प्राणियों के साथ मैत्री का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। सभी के साथ समुचित सद्भावनापूर्ण व मैत्रीपूर्ण व्यवहार बना रहे। यदा-कदा मिलते रहने से कोई अच्छी बात सामने आ सकती है। अभी भगवान महावीर के 2550वें निर्वाण वर्ष का प्रसंग भी चल रहा है। आप सभी से मिलना हो गया, बहुत अच्छी बात है। हम सभी खूब अच्छी साधना करते रहें। 

इस अवसर पर प्रवीणऋषिजी ने अपने विचारों को अभिव्यक्त करते हुए अनेक विषयों का वर्णन करते हुए आचार्यश्री के प्रति अपने श्रद्धाभावों को व्यक्त किया। मुनि पूण्यध्यानविजयजी ने भी इस अवसर पर अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। श्री कर्ण सिंघी व श्री प्रकाश भण्डारी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। श्रीमती वीणा सेठिया ने गीत का संगान किया। 

 

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