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क्रोध है अशांति का कारक : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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-गुस्से को शांत रखने और शांतिमय जीवन जीने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित

-ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपने आराध्य के स्वागत में दी भावपूर्ण प्रस्तुति 

चेम्बूर, मुम्बई (महाराष्ट्र)। चेम्बूर में विराजमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी जनकल्याण के लिए निरंतर ज्ञानगंगा प्रवाहित कर रहे हैं। आचार्यश्री की इस ज्ञानगंगा में चेम्बूरवासी ही नहीं, आसपास के क्षेत्रों के लोग सोत्साह डुबकी लगा रहे हैं। साथ ही श्रद्धालुजन अपने आराध्य के अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर पावन आशीर्वाद भी प्राप्त कर रहे हैं। प्रवास स्थल के आसपास सुबह से लेकर देर रात श्रद्धालुओं का मानों जमघट-सा लगा हुआ है। 

चेम्बूर प्रवास के तीसरे दिन कॉलेज परिसर में ही बने ज्योतिचरण समवसरण में उपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि मानव के भीतर अनेक वृत्तियां होती हैं। सभी में सामान्य रूप से कुछ अच्छाई तो कुछ कमजोरियां भी होती हैं। किसी में अच्छाई ज्यादा होती है तो किसी में कमजोरियां ज्यादा होती हैं। आदमी को अपनी कमजोरियों को जानकर उन्हें कम करने और अच्छाइयों का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। इसी प्रकार मानव की बड़ी कमजोरी गुस्सा है। किसी-किसी को बहुत जल्दी गुस्सा आता है। गुस्सा कभी इतना तीव्र होता है कि वह हाथ भसी उठा सकता है। किसी-किसी में गुस्सा मंद रूप में किसी में मध्यम रूप तो किसी में तीव्र रूप में गुस्सा देखा जा सकता है। 

गुस्सा जब तीव्र होता है तो वह विवेक पर पर्दा डाल देता है अथवा विवेक का लोप कर देता है। गुस्से से जुबान भी बेलगाम हो जाती है। गुस्सा शांत होने पर कई बार आदमी को पछताना भी पड़ता है। इसलिए आदमी को अपने गुस्से पर नियंत्रण रखने का प्रयास करना चाहिए। गुस्से को उपशांत बनाने के लिए दीर्घ श्वास का प्रयोग अथवा अन्य प्रयोग भी करने का प्रयास करना चाहिए। गुस्सा घातक और अशांति का कारक भी है। गुस्से से पारिवारिक सम्बन्ध बिगड़ जाता है। परिवार के मुखिया में भी सहनशक्ति का विकास होना चाहिए। कभी कोई बात कहनी भी हो तो शांति से कही जा सकती है। इसी प्रकार व्यापार में गुस्सा किसी का काम नहीं होता है। सामाजिक दृष्टि से गुस्सा काम का नहीं होता। अपनी गलती को दूर करने और शांति में रहने का प्रयास करना चाहिए। गुस्सा पर नियंत्रण होगा और आदमी अच्छे भाव में रहने का प्रयास करे तो कर्म की निर्जरा भी हो सकती है। अपने विरोध की स्थिति में भी धैर्य और शांति को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। सहिष्णुता, क्षमा वीर का भूषण होता है। इसलिए आदमी को अपने गुस्से को उपशांत करने शांति का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। 

आचार्यश्री के समक्ष चेम्बूर ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। तेरापंथ महिला मण्डल-मुम्बई-चेम्बूर की सदस्याओं ने गीत का संगान किया। एन.जी. आचार्य एण्ड डी.के. मराठे कॉलेज ऑफ आर्ट्स, साइंस एण्ड कॉमर्स की प्रिंसिपल श्रीमती विद्या गौरी वी, लेले ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी अभिव्यक्ति देते हुए कहा कि मैं अपने कॉलेज परिवार की ओर से आपश्री का हार्दिक स्वागत करती हूं। आपश्री का आशीर्वाद बना रहे ताकि हम बच्चों को अच्छे विकास का ज्ञान देते रहें। आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया। 

 

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