-मूसलाधार बरसात में भी गुरुकृपा से अभिस्नात हुए श्रद्धालु
-भगवती सूत्र में वर्णित प्रत्यनित शब्द को आचार्यश्री ने किया व्याख्यायित
-कालूयशोविलास की आख्यानमाला से भी श्रद्धालु जनता हुई लाभान्वित
मीरा रोड (ईस्ट), मुम्बई।मौसम विभाग द्वारा मुम्बई महानगर के लिए जारी येलो अलर्ट मानों सही साबित हो रही है। गत दिनों से हो रही मूसलाधार बरसात से चारों ओर जलभराव की स्थिति बनी हुई है। इस कारण आमजन जीवन प्रभावित हुआ है। पूणे की ओर जाने वाली कुछ ट्रेनों का परिचालन भी बंद किया गया है, किन्तु अभी तक मुम्बई की लाइफलाइन कही जाने वाले लोकल ट्रेनें संचालित हैं। सरकार द्वारा आवश्यक एहतियात भी बरते जा रहे हैं। ऐसे मूसलाधार बरसात में भी नन्दनवन गुरुवार को भी गुरुवाणी की मंगल ध्वनि से गुंजायमान रहा। दृढ़ संकल्पी, महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को बाहर हो रही मूसलाधार वर्षा के मध्य भी श्रद्धालुओं पर ज्ञानवृष्टि की तो श्रद्धालु निहाल हो उठे।
गत दिनों से लगातार हो रही वर्षा के कारण आचार्यश्री महाश्रमणजी के प्रवास स्थल भिक्षु विहार से ही मंगल प्रवचन कार्यक्रम समायोजित हुआ। सैंकड़ों श्रद्धालु तीर्थंकर समवसरण में लगे स्क्रीन के माध्यम से अनेकानेक श्रद्धालु प्रवास स्थल तथा अमृतवाणी यूट्यूब चैनल के माध्यम से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आचार्यश्री की मंगलवाणी से लाभान्वित हुए।
युगप्रधान, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र के आधार पर पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि भगवती सूत्र में तीन प्रकार के प्रत्यनित बताए गए हैं। गुरु प्रत्यनित, उपाध्याय प्रत्यनित और स्थविर प्रत्यनित। प्रत्यनित का अर्थ होता है-प्रतिकूल या अवीनित। जैन शासन अथवा अनेक संप्रदायों में गुरु होते हैं, कहीं उपाध्याय और स्थविर भी होते हैं। इनके प्रत्यनित भी बताए गए हैं। गुरु की अवमानना, उल्लघंन, अपमान करने वाले, उपाध्याय के प्रतिकूल और स्थविरों के प्रतिकूल व्यवहार करने वाले प्रत्यनित होते हैं। इस प्रकार भगवती सूत्र में प्रत्यनित बताए गए हैं।
आदमी को प्रत्यनित बनने से बचने का प्रयास करना चाहिए। गुरु के प्रतिकूल नहीं, गुरुचरणानुगामी बनने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को स्वयं को प्रत्यनित बनने से बचाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री तुलसी छोटी अवस्था में आचार्य बने। उनसे बड़े धर्मसंघ में अनेक संत थे, किन्तु सभी उनके सम्मान आदि के प्रति सजग रहते थे। इससे यह सीख लेनी चाहिए कि आचार्य भले ही उम्र अथवा दीक्षा पर्याय में छोटे हों, किन्तु उनके प्रति, समर्पण, श्रद्धा का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने जीवन में प्रत्यनित बनने से बचने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने भगवती सूत्र के आधार पर पावन पाथेय प्रदान करने के उपरान्त कालूयशोविलास की आख्यानमाला को आगे बढ़ाते हुए आचार्यश्री कालूगणी के कांठा क्षेत्र में विहार-प्रवास के दौरान आचार्यश्री कालूगणी और मुनि तुलसी के मध्य हुए पद्यात्मक प्रसंगों का रोचक एवं सरस वर्णन किया तो श्रद्धालु निहाल हो उठे।