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बीस साल बाद गोधरा कांण्ड पर आया फैसला, सबूत के अभाव में 35 आरोपी बरी 

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बीस साल बाद गोधरा कांण्ड पर आया फैसला, सबूत के अभाव में 35 आरोपी बरी 

गांधीनगर । गोधरा काण्ड पर बीस साल बात आज अदालत का फैसला आया है। इसमें सबूत का अभाव होने के कारण 35 आरो‎पियों को बरी कर ‎दिया गया है। गौरतलब है कि 27 फरवरी 2002 को गोधरा ट्रेन अग्निकांड हुआ था। गुजरात के पंचमहल जिले में हालोल शहर की एक अदालत ने 2002 के गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के चार अलग-अलग मामलों में सभी 35 आरोपियों को बरी कर दिया है। इन चार मामलों में तीन लोगों की हत्या कर दी गई थी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश हर्ष त्रिवेदी की अदालत ने 12 जून को अपना फैसला सुनाया, जो 15 जून को उपलब्ध हुआ। हालां‎कि अदालत ने दंगों को सुनियोजित बताने को लेकर ‘छद्म धर्मनिरपेक्ष मीडिया और नेताओं’ की आलोचना की। गौरतलब है ‎कि डेलोल गांव में कलोल बस पड़ाव और डेरोल रेलवे स्टेशन इलाके में 28 फरवरी, 2002 को हिंसा फैल जाने के बाद 35 लोगों को हत्या एवं दंगा फैलाने का आरोपी बनाया गया था। इसके एक दिन पहले ही गोधरा में साबरमती ट्रेन में आग लगा दी गई थी। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि घातक हथियारों से तीन लोगों की हत्या कर दी गई और सबूत नष्ट करने के इरादे से उनके शव जला दिए गए, लेकिन अभियोजन पक्ष आरोपियों के विरूद्ध सबूत पेश नहीं कर पाया। इन मामलों में 52 आरोपी थे। सुनवाई लंबित रहने के दौरान उनमें से 17 की मौत हो गई। यह सुनवाई 20 साल से भी अधिक समय तक चली। 
अदालत में पेश मामलों के कागजातों के अनुसार राहत शिविर में पुलिस को तीन लापता व्यक्तियों के बारे में बताया गया। ये राहत शिविर इलाके में दंगा होने के बाद स्थापित किए गए थे। यह आरोप लगाया गया था कि कलोल शहर और दो अन्य जगहों पर हिंदुओं एवं मुसलमानों के बीच दंगे भड़क गए। कुछ दिन बाद अल्पसंख्यक समुदाय के तीन लापता सदस्यों के शव पाए गए। दंगा करने, गैरकानूनी रूप से एकजुट होने और हत्या करने के आरोपों के तहत दर्ज मामले का सामना कर रहे सभी 52 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें उन्हें कलोल, हालोल और गोधरा की उपजेल भेज दिया गया। बाद में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया। सुनवाई के दौरान कुल 130 गवाहों से जिरह की गई।
इस मामले में अदालत ने कहा कि किसी भी आरोपी के खिलाफ दंगा फैलाने का कोई भी आरोप नहीं टिक पाया तथा अभियोजन पक्ष अपराध में इस्तेमाल किये गये हथियारों को बरामद नहीं कर पाया। न्यायाधीश ने कहा कि ‘साम्प्रदायिक दंगों के मामले में पुलिस आमतौर पर दोनों समुदायों के सदस्यों को अभियोजित करती है। लेकिन इस तरह के मामलों में यह अदालत को पता लगाना है कि दोनों में से कौन सही हैं, अदालत ने गोधरा कांड से स्तब्ध और ‘व्यथित लोगों के घावों पर नमक छिड़कने’ को लेकर ‘छद्म धर्मनिरपेक्ष मीडिया और नेताओं की’ आलोचना भी की। 

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