सूरत। डुम्भाल हनुमानजी मन्दिर छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु समर्थ स्वामी रामदास जी महाराज द्वारा ईस्वी सन 1625 में मार्गशीर्ष शुक्ला नवमी को स्थापित किया गया था। भारतवर्ष के प्राचीन तथा ऐतिहासिक महत्व वाले मंदिरों में से यह एक है। छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा हिंदवी साम्राज्य की पुनर्स्थापना की नींव हमारे शहर सूरत से ही मजबूत हुई क्योकि जनवरी 1664 में छत्रपति शिवाजी महाराज सूरत पधारे थे, जिन्होंने सूरत के तत्कालीन नबाब एनायत खान के विस्तार पर आक्रमण किया था, उस समय सूरत व्यापारिक दृष्टि से समृद्ध था।यहां के व्यापारियों ने छत्रपति शिवाजी महाराज को धन प्रदान किया,लेकिन शासक के कोपभाजन से बचने के लिए इसे लूट का नाम दिया ताकि एनायत खान उन्हें प्रताड़ित न करे। इस प्रकार यह स्थान हिंदवी साम्राज्य की पुनर्स्थापना के लिए नींव के पत्थर के समान साबित हुआ।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने गुरु समर्थ स्वामी रामदास जी महाराज की आज्ञा से सातारा जिले के रायरेश्वर महादेव की आराधना की तथा अपने 12 मित्रों के साथ महादेव के समक्ष अपने रक्त की शपथ लेकर हिंदवी साम्राज्य स्थापित करने का संकल्प लिया।
हनुमान जन्मोत्सव के शुभ दिन यह अद्भुत संयोग प्राप्त हुआ है कि जहाँ पर छत्रपति शिवाजी महाराज ने शपथ ली उस मन्दिर के पुजारी आज डुम्भाल मन्दिर पधारे है। शिवाजी महाराज ने जो शपथ रायरेश्वर मन्दिर में ली उसे उन्होंने पूर्ण किया था तथा 118 किल्लो की स्थापना की। लेकिन आज वो खण्डहर अवस्था मे है। 118 किले छत्रपति महाराज की 118 संसद सभाएं थी। उन्हें पुनः सुंदर तथा सुव्यवस्थित करने का संकल्प जंगम परिवार ने लिया है। हम भी उनके साथ यह शपथ लेते है कि हमारे इतिहास पुरुषों से सम्बंधित जितने भी स्थान जैसे छत्रपति शिवाजी महाराज व महाराणा प्रताप के दुर्ग व किले है उनका जीर्णोद्धार करके हमारे इतिहास तथा संस्कृति को पुनः जागृत करेंगे। हम भी महारानी अहिल्याबाई होल्कर की तरह स्वयं जागृत होकर संकल्पबद्ध होकर सभी को जागृत करने की शपथ लेते है।