IMG-LOGO
Share:

भीतर में रहे पर हित को भावना – युगप्रधान आचार्य महाश्रमण

IMG

– आचार्यवर ने किया आत्मशुद्धि के सूत्रों को व्याख्यायित

पदमला, आणंद।सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति के उद्देश्य से हजारों किलोमीटर पदयात्राएं कर लाखों लोगों के जीवन में परिवर्तन लाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें पट्टधर युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी वर्तमान में गुजरात के आणंद जिले में विचरण करा रहे है। आज प्रातः आचार्यश्री ने वासद से मंगल विहार किया। मार्गस्थ गांवों में स्थानीय लोगों ने शांतिदूत को अपने क्षेत्र में पा श्रद्धानत हो स्वागत किया। पुज्यप्रवर की प्रेरणा से उन्होंने नशामुक्ति आदि के संकल्पों को स्वीकार किया। वडोदरा से एक पड़ाव पूर्व होने से आज वडोदरा वासी भी बड़ी संख्या में आराध्य की आगवानी में सेवा उपासना हेतु प्रस्तुत थे। लगभग 08 किमी विहार कर आचार्यश्री पदमला स्थित श्री ॐकार जैन तीर्थ में प्रवास हेतु पधारे। सायं पुनः वहां से लगभग 05 किमी विहार कर गुरुदेव हाईवे पर स्थित अंकुर विद्यालय, दशरथ में रात्रिकालीन प्रवास हेतु पधारे।

मंगल प्रवचन में गुरुदेव ने कहा– धर्म को आत्मा की शुद्धि का साधन माना गया है। धर्म शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं जैसे परिवार-धर्म, गाँव-धर्म, समाज-धर्म व राष्ट्र-धर्म आदि। आत्म धर्म में साधुओं के लिए महाव्रत होता है जहाँ व्रतों की पूर्णता होती है वहीं गृहस्थों के लिए अणुव्रत अर्थात छोटे–छोटे नियम होते है। अहिंसा, संयम व तप से धर्म का स्वरूप विकसित बनता है जो साधुओं व गृहस्थों दोनों के लिए जरूरी है। गृहस्थों के जीवन को धार्मिक बनाने के लिए कुछ बातों के प्रति जागरूकता रहनी जरूरी है जैसे सुपात्र दान। अर्थात साधु को शुद्ध भावों से शुद्ध दान देना। दूसरा है गुरु के प्रति विनय, श्रद्धा व सम्मान के भाव। तीसरा प्राणी मात्र के प्रति दया व अनुकम्पा के भाव रखना। चौथा सबके साथ न्यायोचित व्यवहार करना। 

गुरुदेव ने आगे व्याख्या करते हुए कहा कि इसी प्रकार पर हित व दूसरे के आध्यात्मिक कल्याण की भावना भी हमारे भीतर में होनी चाहिए। व्यक्ति पैसे, धन-वैभव व लक्ष्मी का धमंड ना करे। आखिर घमंड किस चीज का करना एक दिन सब यही पीछे छूट जाता है। और व्यक्ति संगति भी करे तो सज्जनों को संगति करे। दुर्जनों से, बुरे कार्यों से दूर रहे। इस प्रकार का आचरण कर गृहस्थ भी अपने जीवन को अच्छा बनाकर उसका सदुपयोग कर सकता है। इन्हें आत्मसात करने की दिशा में प्रस्थान करे व अपने इस मनुष्य जीवन को सफल बनाये यह अपेक्षा है।

कार्यक्रम में तत्पश्चात इस अवसर पर वाव पृथक समाज की बहनों ने पुज्यवर के अभिनंदन में गीत का संगान किया। 

 

Leave a Comment

Latest Articles

विद्रोही आवाज़
hello विद्रोही आवाज़

Slot Gacor

Slot Gacor

Situs Slot Gacor

Situs Pulsa

Slot Deposit Pulsa Tanpa Potongan

Slot Gacor

Situs Slot Gacor

Situs Slot Gacor

Login Slot

Situs Slot Gacor