महुडी स्थित प्रसिद्ध जैन मंदिर परिसर में पधारे राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमण
-आचार्यश्री के आगमन से हर्षित समस्त जैन समाज के किया भव्य अभिनंदन
गांधीनगर (गुजरात)।गुजरात की समृद्ध धरा को आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाने, जन-जन में मानवीय मूल्यों को जागृत करने के लिए अणुव्रत यात्रा कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य, भगवान महावीर के प्रतिनिधि शुक्रवार को अपनी धवल सेना संग गुजरात के प्रसिद्ध महुडी जैन मंदिर में पधारे तो हर्षित सकल जैन समाज ने मानवता के मसीहा का भव्य रूप में स्वागत किया। गांधीनगर जिले के महुडी में सन् 1917 में बुद्धिसागरसूरी द्वारा स्थापित यह मंदिर जैन धर्मावलम्बियों के लिए विख्यात है। इसे ऐतिहासिक रूप में मधुपुरी के नाम से जाना जाता था। ऐसे ऐतिहासिक स्थल में महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी का मंगल शुभागमन जैन समाज की एकता को प्रदर्शित करने वाला था। मूर्तिपूजक संप्रदाय की साध्वी पुण्यप्रभाजी आदि साध्वियों ने आचार्यश्री का अभिनंदन किया तो आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया।
शुक्रवार को प्रातः की मंगल बेला आचार्यश्री प्रांतिज से गतिमान हुए। जन-जन को अपने आशीर्वाद से लाभान्वित करते हुए आचार्यश्री अगले गंतव्य की ओर बढ़ रहे थे। विहार के दौरान आचार्यश्री ने साबरकांठा जिले की सीमा को अतिक्रान्त कर गांधीनगर जिले की सीमा में मंगल प्रवेश किया। गुजरात की सुप्रसिद्ध नदी साबरमती को पार कर आचार्यश्री महुडी में पधारे तो एक अलग ही आध्यात्मिक माहौल छा गया। जैन धर्म के अनेक आम्नायों के लोग तेरापंथ के महानायक का अभिनंदन कर रहे थे। सभी पर आशीषवृष्टि करते हुए लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री महुडी भगवान पद्मप्रभु एवं घण्टाकर्ण महावीर जैन मंदिर में पधारे। वहां से आचार्यश्री प्रवास हेतुएक धर्मशाला में पधारे।
यहां आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी मंगल प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के भीतर इच्छाएं होती हैं। प्राणी इच्छाशील होता है। आचार्यश्री ने इच्छाओं के प्रकारों का वर्णन करते हुए कहा कि इच्छाएं आकाश के समान अनंत होती हैं। यदि किसी आदमी को सोने का पहाड़ भी प्राप्त हो जाए तो उसकी इच्छा एक और सोने के पहाड़ को प्राप्त करने की हो जाएगी। इस प्रकार इच्छाओं को कोई अंत नहीं है। इच्छाएं अच्छी और बुरी भी हो सकती हैं। किसी का अनिष्ट करने की इच्छा, किसी के साथ बुरा करने की इच्छा, किसी का धन हड़पने की इच्छा बुरी इच्छाएं होती हैं। आदमी को इनसे बचने का प्रयास करना चाहिए। सामान्य इच्छा तो फिर भी उचित हो सकती है, किन्तु अध्यात्म जगत में आगे बढ़ने की इच्छा, अपनी आत्मा का कल्याण करने की इच्छा, साधुत्व को अपनाने और अपने जीवन में त्याग की चेतना को बढ़ाने की इच्छा सदीक्षा होती है। व्यक्ति को अपनी इच्छाओं का परिसिमन करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने प्रवचन के मध्य गुजरात के बाव क्षेत्र से पहुंचे वर्षीतपरत श्रावक-श्राविकाओं व साधु-साध्वियों को वर्षीतप का प्रत्याख्यान करवाया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने पुनः प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि प्राणी भौतिक इच्छाओं पर नियंत्रण रखने का प्रयास करे और एक-दूसरे के प्रति तथा स्वयं के प्रति शुभेच्छा रखने का प्रयास करे। आचार्यश्री ने कहा कि आज हम जैन धर्म से जुड़े इस स्थान में आए हैं। भगवान महावीर हमारे जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर थे। ऐसे धर्मस्थान में आदमी ध्यान, स्वाध्याय, जप, तप आदि के द्वारा भौतिक इच्छाओं का दमन करने और वीतरागता के पथ पर आगे बढ़ने का प्रयास करे।
आचार्यश्री के मंगल उद्बोधन से पूर्व साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। गत चतुर्मास बाव में करने वाले मुनि निकुंजकुमारजी व मुनि मार्दवकुमारजी ने अपने आराध्य के दर्शन तो गुरुवार को ही कर लिए थे, किन्तु आज के प्रवचन में आचार्यश्री से प्राप्त हुए आशीर्वाद के साथ मुनि निकुंजकुमारजी ने अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी। इस मंदिर परिसर से जुड़े हुए भूपेन्द्र भाई मेहता ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी।