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भोग पर हो योग का अंकुश–आचार्य महाश्रमण

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लगभग 12 किमी विहार कर इडर पधारे शांतिदूत

अणुव्रत अनुशास्ता ने दी इच्छाओं के परिसीमन की प्रेरणा

 इडर, साबरकांठा। सर्दी, गर्मी, बारिश की ठंडी फुहारें हो या चाहे शरीर को झुलसा देने वाली लूं की गर्म हवाएं हर विषमता में भी समता से स्वयं को भावित रखने वाले महापुरुष आचार्य श्री महाश्रमण जी जनोद्धार करते हुए निरंतर पदयात्रा पर है। उत्तर गुजरात क्षेत्र में विचरण करा रहे गुरुदेव का आज बडोली ग्राम से मंगल विहार हुआ। आचार्य श्री का एक दिवसीय प्रवास पाकर बडोली वासी कृतज्ञता की अनुभूति कर रहे थे। निर्धारित यात्रा पथ में परिवर्तन कर अतिरिक्त विहार कर आचार्यप्रवर द्वारा क्षेत्रों की स्पर्शना से हर श्रद्धालु सौभाग्यशीलता का अनुभव कर रहा है। कि इस महान गुरु हमे प्राप्त है जो भक्तों की भक्ति पर सहजता से अपनी करुणा वृष्टि कर देते है। लगभग 12 किलोमीटर विहार कर युगप्रधान आचार्य श्री का इडर में पदार्पण हुआ। गुरुदेव से आगमन से सकल जैन समाज में विशेष हर्षोल्लास छा गया। समूह रूप में जगह जगह लोग शांतिदूत का स्वागत कर रहे थे। उमानगर बांगलोज में गुरुदेव का प्रवास हेतु पदार्पण हुआ। 

मंगल प्रवचन में धर्म देशना देते हुए आचार्य श्री ने कहा– भोग, रोग व योग इन तीन शब्दों का एक योग है। भोग पदार्थों का होता है व रोग के शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक रूप भी होते है। भोग व रोग की मुक्ति के लिए योग साधना का प्रयोग किया जाता है। मोक्ष का उपाय है योग व साधना। सम्यक ज्ञान, दर्शन, चारित्र की साधना, स्वाध्याय, आसन, प्रणायाम, कायोत्सर्ग आदि भी योग के ही रूप है। योग में सभी साधना समाहित हो जाती है। मोक्ष से जोड़ने वाली सब प्रवृतियाँ योग की कोटि में है। उपयोग व उपभोग दो समान से शब्द हैं लेकिन इनका अर्थ अलग–अलग है। जिसके साथ आसक्ति जुड़ जाती है वह उपभोग है और जहां केवल पदार्थ का आवश्यकता वश इस्तेमाल है वह उपयोग है।  

एक कथा के माध्यम से गुरुदेव ने आगे कहा कि भोग समस्या का सृजक होता है, अतः अति भोग से दूर रहने का प्रयास होना चाय। व्यक्ति भोगों को भोगता है फिर भोग उसे भोगने लग जाते है। उम्र के साथ शरीर गल गया, चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाती है व व्यक्ति परवश हो जाता है फिर भी उसकी तृष्णा समाप्त नहीं होती। राग से समान कोई दुःख नहीं व त्याग के समान कोई सुख नहीं, आनंद नहीं। हम राग से विराग व त्याग के पथ पर चलें, अपने परिग्रह व इच्छाओं का परिसीमन करें। साधू न भी बन सकें तो अणुव्रतों का पालन करें। भोग पर अंकुश ही योग-साधना है।
ईडर के नगरपालिका प्रमुख जयसी भाई तंवर,अरुणा,भाविक,राजेश खमेसरा,सुतरिया,स्वीटी भानावत, महावीर भाई डोसी, डॉ. पंकज भाई,लक्ष्मीलाल झाबक,प्रक्षाल ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय महिला मण्डल, नीति, सोनू, आरती व नव्या, प्रक्षाल, रूद्र तीर्थ, श्रेय ने पृथक-पृथक गीत का संगान किया। 

 

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