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समन्वय, सामंजस्य, संतुलन, सहनशीलता से दाम्पत्य जीवन बनता सुखद-मुनि सुधाकर

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 उपस्थित सैकड़ों दम्पतियों को मुनि सुधाकरजी ने खुशहाल सम्बधों के लिए दिये टिप्स

 रिश्तो की डोर, ना हो कमजोर विषयक सेमिनार का आयोजन

   माधावरम्, चेन्नई ।आचार्य श्री महाश्रमणजी के शिष्य मुनि श्री सुधाकरकुमार जी के सान्निध्य में जय समवसरण, जैन तेरापंथ नगर, माधावरम्, चेन्नई में *रिश्तो की डोर, ना हो कमजोर* विषय पर भव्य सेमिनार का आयोजन श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ माथावरम ट्रस्ट के तत्वावधान में किया गया। जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में जैन श्वेतांबर तेरापंथ महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया, विशिष्ट अतिथि उपाध्यक्ष नरेंद्र नखत एवं महासभा के आंचलिक संयोजक ज्ञानचन्द आंचलिया एवं अध्यक्षता प्रबंध न्यासी घीसूलाल बोहरा ने की।
  मुनि सुधाकर जी ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा आज छोटी-छोटी बातों पर तकरार और टकरार होने लगती हैं, जिससे सात फेरों का संबंध भी बंधन की जंजीर बनकर जीवन की बाधा बन जाता है। जिससे रिश्तो में प्रेम, सौहार्द, त्याग, प्यार का अभाव दिखने लगता है। *आज तलाक की विकराल समस्या से संयुक्त परिवार और भारतीय आदर्श दांपत्य जीवन पर प्रश्न चिन्ह लग रहा है।* भौतिकता की चकाचौंध में व्यक्ति मधुर रिश्ते का एहसास भूलता जा रहा है। रिश्ते की खटास जीवन को त्रास बना देती हैं। पति-पत्नी के मध्य में अविश्वास, अहम, वहम एवं संदेह सात फेरों के संबंध को भी दुश्मनी में बदल देता है। *मुझे तुम पर विश्वास है, यह भाव एक दूसरे के प्रति रहना चाहिए।*
  मुनि श्री ने आगे कहा दाम्पत्य जीवन की खुशहाली के लिए एक दूसरे को समय देना चाहिए। आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में व्यक्ति के पास रिश्तो को निभाने का समय नहीं है, जिससे रिश्ते मुरजाते जा रहे हैं।
 सैकड़ों उपस्थित दम्पत्तियों को विशेष प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए मुनि श्री ने कहा कि आपस में संवाद करें विवाद नहीं, वार्तालाप करें विलाप नहीं एवं एक दूसरे के प्रति कृतज्ञता और धन्यवाद का भाव रखें। रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए समन्वय, सामंजस्य, संतुलन एवं सहनशीलता के भाव का विकास जरूरी हैं।
 मुनि नरेशकुमारजी ने कहा दाम्पत्य जीवन की सुगमता और शुद्धता के लिए वाणी का विवेक जरूरी है। महासभा के अध्यक्ष मनसुखलाल सेठिया ने कहा रिश्तो के लिए कहना, सुनना, सहना एवं रहना सीखें।अच्छे संबंधों से ही सफलता प्रकट होती है।एक दूजे के प्रति समर्पण का भाव रहना चाहिए।
  स्वागत स्वर प्रबंध न्यासी घीसूलाल बोहरा ने दिया। महासभा उपाध्यक्ष नरेन्द्र नखत,आंचलिक प्रभारी ज्ञानचन्द आंचलिया ने विचार रखें।छल्लाणी बहनों ने मंगलाचरण किया। सेमिनार के संयोजक प्रवीण सुराणा ने कुशल संचालन करते हुए,सबका धन्यवाद किया। इस अवसर पर महासभा और अन्य संघीय संस्थाओं के अनेकों प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।

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