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युवा अपनी शक्ति का करे सदुपयोग–आचार्य महाश्रमण

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-अणुव्रत अनुशास्ता से प्रेरणा पाने पहुंचे सुप्रसिद्ध अभिनेता विवेक ओबेरॉय

-पुज्यप्रवर ने बताई लोगस्स की महत्ता

शनिवार, घोड़बंदर रोड, मुंबई (महाराष्ट्र)।मुंबई के नंदनवन में चातुर्मास हेतु विराजित युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी जन कल्याण हेतु निरंतर प्रेरणा पाथेय प्रदान कर रहे है। आज अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् के ५७वें राष्ट्रीय अधिवेशन के द्वितीय दिवस के अवसर पर देशभर की युवाशक्ति रैली के माध्यम से श्रीचरणों में उपस्थित हुई। तीर्थंकर समवसरण आज देश के कोने–कोने से आई युवाशक्ति के हरा भरा नजर आ रहा था। आज पूज्य प्रवर के सान्निध्य में प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता विवेक ओबेरॉय,उद्योगपति  सुभाष रूनवाल, जगदीश कुमार गुप्ता आदि दर्शनार्थ पहुंचे और आशीर्वाद प्राप्त किया। 

परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि लोगस्स पाठ में चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति की गई है । कई लोग इसकी स्तुति भी करते हैं व कई कुछ माला भी फेर लेते है। तीर्थंकरों की स्तुति व भक्ति, भक्ति योग का एक प्रयोग है। भगवान महावीर को वर्धमान के नाम से नमस्कार किया गया है। भगवान महावीर समता के महान साधक थे। वे अनुकूलता व प्रतिकूलता दोनों स्थितियों सम रहे। नागराज व देवराज दोनों ने पाद स्पर्श फिर भी वे समता में रहे। मोहनीय कर्म का नाश कर वे एक दिन सिद्ध बुद्ध मुक्त बन गए। 

गुरुदेव ने आगे फरमाया कि जीवन में किसी भी प्रकार की कठिनाई आये तो भी धर्म को न छोड़ें। मूर्ख व्यक्ति मिले हुए धर्म को छोड़ने वाले भोग व अज्ञान के पीछे दौड़ते हैं । प्राप्त धर्म को छोड़कर अधर्म की ओर प्रवृत होने वाला वैसा ही मूढ़ होता है जैसा कल्पवृक्ष को उखाड़ कर उसकी जगह धतूरे को बोने वाला, चिंतामणि रत्न को फेंककर उसकी जगह कांच लेने वाला व हाथी को बेचकर गधा खरीदने वाला होता है। जीवन में धर्म करते हुए भी समस्याएँ आ सकती है व उसे छोड़ने के बाद भी। समस्याएँ धर्म से नहीं आती बल्कि अपने कर्म से आती है। यदि समस्याएँ आये तो समझना चाहिए कि अपने पापों का भुगतान करके मैं ऋण-मुक्त हो रहा हूँ, मैं कर्ज मुक्त हो रहा हूँ। आज शरद पूर्णिमा है हमें चाँद की तरह निर्मल बनने का प्रयास करना चाहिए। 

युवाओं को नैतिकता, ईमानदारी आदि गुणों के विकास करने हेतु प्रेरणा देते हुए गुरुदेव ने कहा– जीवन में आदमी अनेक कलाओं में निष्णात होता है, पर व्यक्ति अगर संयम, ईमानदारी आदि की कलाओं को नही सीखता तो उसका अन्य कलाओं में निष्णात होना गौण हो जाता है। अखिल भारतीय युवक परिषद युवकों का संगठन है, इसका विकास होता रहे, आध्यात्मिक उन्नयन की दिशा में आगे बढ़ते रहे। युवा व्यक्ति अपनी शक्ति का सदुपयोग करें। 

कार्यक्रम में साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी का सारगर्भित उद्बोधन हुआ। मुनि श्री योगेशकुमार ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। अभिनेता श्री विवेक ओबेरॉय ने भी प्रेरणादायी वक्तव्य दिया। 

अभातेयुप के राष्ट्रीय अध्यक्ष  पंकज डागा ने दो वर्षीय कार्यकाल में हुए कार्यों की जानकारी प्रस्तुत की। प्रबंध मंडल ने प्रतिवेदन श्री चरणों में प्रेषित किया। रूनवाल ग्रुप के चेयरमैन सुभाष रूनवाल ने अपनी अभिव्यक्ति दी। 

 

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