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मनुष्य भव से ही मोक्ष प्राप्ति संभव– आचार्य महाश्रमण

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- शांतिदूत ने किया जीवों के प्रकारों का वर्णन

-नेशनल एडवोकेट्स एंड डॉक्टर्स कांफ्रेंस का आयोजन

शनिवार, घोड़बंदर रोड,मुंबई।युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन निर्देशन में चतुर्विद्ध धर्मसंघ द्वारा समाज के धार्मिक उत्थान का महनीय कार्य किया जा रहा है। शांतिदूत के आध्यात्मिक मार्गदर्शन में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ समाज की अनेकों संस्थाएं धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियों द्वारा निरंतर सेवा कार्यों में गतिशील है। कार्यक्रम में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम द्वारा दो दिवसीय नेशनल एडवोकेट्स एंड डॉक्टर्स कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। जिसमें देशभर से समागत प्रतिभागियों ने भाग लिया। इस अवसर पर बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश के.आर.श्री राम, फेडरल एंड कंपनी के वरिष्ठ वकील एम एस फेडरल, युवराज पी.नावरेकर,एडवोकेट पंकज बाफना की गरिमामय उपस्थिति रही। 

मुख्य प्रवचन में भगवती आगम के सूत्रों की व्याख्या करते हुए गुरुदेव ने कहा– इस दुनियां में सिर्फ दो ही तत्व है एक जीव व दूसरा अजीव, इसके अलावा और कुछ नहीं होता। जितनी भी वस्तुएं, पदार्थ दिखाई दे रहे हैं सभी इन दो तत्वों में समाविष्ट हो जाते है। जीव का कोई प्रारम्भ बिन्दु नही होता, वह अनंत काल से है और अनंत काल तक रहेगा। आत्माएं दो प्रकार की होती है - सिद्ध व संसारी। सिद्ध वे जो जन्म मरण की परम्परा से मुक्त हो गये। जिनके न मन, न वाणी और न शरीर होता है। ऐसी अनंत आत्माएं हैं जो मोक्ष को प्राप्त कर चुकी है। 

गुरुदेव ने आगे बताया कि मनुष्य के अतिरिक्त किसी जन्म से मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। देवों को भी यदि मोक्ष जाना है तो मनुष्य जन्म लेना पड़ेगा। जीव निर्वृति पांच प्रकार की होती है व जीव भी पांच प्रकार के होते है एकेंद्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरेंद्रिय व पंचेन्द्रिय। एक इन्द्रिय वाले जीवों के सिर्फ एक स्पर्शेन्द्रिय होती है, सजीव वायु, आग, पानी, सजीव मिट्टी, वनस्पति आदि इनमें आते है। दो इन्द्रिय वालों में स्पर्श व रस जैसे लट आदि। तीन इन्द्रिय वालों के स्पर्श व रस के आलावा गंध की शक्ति भी होती है जैसे कीड़े मकोडे। चार इन्द्रिय में मक्खी, मच्छर जैसे जीव आते है और पांच इंडिया वाले मनुष्य, तिर्यंच, देव व नारक है। इनके पांचों ही इंद्रियां होती है। यह है सारा जीव जगत। अजीव में दिखाई नही देने वाले – धर्मास्तिकाय जो गति में सहायक, अधर्मास्तिकाय जो स्थिरता में सहायक। छह द्रव्य जहाँ होता है वह लोक है। लोक के सिवाय एक है अलोकाकाश, जहाँ सिर्फ आकाश ही है। जो दिखाई देते हैं वे पुद्गल होते है। व्यक्ति सभी जीवों के प्रति अहिंसा व करुणा के भाव रखे। जीने के लिए गृहस्थों को कुछ हिंसा भी करनी पड़ सकती है, पर साधु इससे मुक्त रहते है। जितना हो सके अहिंसा की चेतना जागृत करने का प्रयास करना चाहिए।

इस अवसर तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री मनीष कोठारी, मुम्बई ब्रांच अध्यक्ष श्री राज सिंघवी, मंत्री श्री कमल मेहता, श्री कमलेश नाहर, श्री कपिल सिसोदिया आदि ने गणमान्य व्यक्तियों का सम्मान किया। श्री राकेश बोहरा ने अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन श्री राज सिंघवी ने किया।

 

 

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