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धर्मोपासना में करे शरीर का सदुपयोग–आचार्य महाश्रमण

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- पुज्यवर ने दी व्यर्थ तनाव से बचने की प्रेरणा

 घोड़बंदर रोड, मुंबई।अध्यात्म जगत के महासुर्य संत शिरोमणि युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी की मंगल सन्निधि से नंदनवन परिसर अध्यात्म रश्मियों से सराबोर हो रहा है। आचार्य प्रवर के प्रवचनों के द्वारा श्रद्धालु गहन सिद्धांतों को भी सरलता से हृदयंगम कर रहे है। 

मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में धर्म देशना देते हुए आचार्य श्री ने कहा– स्वस्थ कौन होता है ? वह व्यक्ति स्वस्थ होता है जिसका वात, पित, कफ, श्लेष्म आदि संतुलित होते है। संतुलित अर्थात ये सब न बहुत कम हो न बहुत ज्यादा। वायु का वेग ज्यादा होने से भी शरीर में कठिनाई हो जाती है। पित्त की भी उग्रता न हो व कफ की मात्रा भी असंतुलित न हो। शरीर में अग्नि का भी संतुलित रहना जरूरी है। धातुए, रक्त संचार व शौच क्रिया भी संतुलित रहे। जब तक शरीर स्वस्थ व सक्षम हो व वात, कफ, श्लेष्म व बीमारियाँ शांत रहे व ये सब शरीर पर आक्रमण न करें यह अव्यावाद है।

गुरुदेव ने आगे कहा कि मन की प्रसन्नता भी स्वस्थता का सहायक तत्व है। अतः आदमी को व्यर्थ के तनाव से बचने का प्रयास करना चाहिए। मन की प्रसन्नता शरीर को भी स्वस्थ रखती है। सार में कहें तो अव्यावाद है –बीमारी का न होना व शरीर का स्वस्थ रहना। जब तक हमारा शरीर सक्षम हो, स्वस्थ हो, बुढ़ापा पीड़ित न करे, बिमारियाँ आक्रमण न करें व इन्द्रियां ठीक कार्य करें हमें धर्म की साधना कर लेनी चाहिए। दुर्घटना भी धर्मोपासना में बाधक बन सकती है। अतः अव्यावाद की स्थिति में हम इस शरीर का उपयोग सद्कर्मों में जितना संभव हो करते हुए इस मानव जीवन के सार को पाने का प्रयास करे। 

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