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शांति व संयम से जीयो और जीने दो : आचार्यश्री महाश्रमण

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-गोरेगांव प्रवास के अंतिम दिन, आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को दिखाया शांति का मार्ग

-साध्वीवर्याजी ने भी श्रद्धालुओं को किया उत्प्रेरित 

गोरेगांव, मुम्बई। जैन परंपरा में 24 तीर्थंकर की बताई बताई गई है। प्रत्येक अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी में 24-24 तीर्थंकर होते हैं। इस अवसर्पिणी के जम्बूद्वीप में 24 तीर्थंकर हो चुके हैं। इस तीर्थंकर चौबीसी की परंपरा में 16वें तीर्थंकर भगवान शांतिनाथ हुए हैं। अध्यात्म जगत में सर्वोच्च पद तीर्थंकर का होता है। तीर्थंकर अध्यात्म के अधिकृत प्रवक्ता होते हैं। इसी प्रकार भौतिक जगत का सर्वोच्च पद चक्रवर्ती का होता है। भगवान शांतिनाथ ऐसे भव्य जीव थे, जिन्होंने एक ही जन्म में भौतिक जगत सर्वोच्च पर प्रतिष्ठित हुए तो अध्यात्म जगत के भी सर्वोच्च पद तीर्थंकरत्व को भी प्राप्त कर लिया। भगवान शांतिनाथ को शांति का प्रतीक माना जाता है। 

मनुष्य शांति की कामना करता है। वह दुःखों से दूर सुख-शांति से युक्त जीवन की कामना करता है। सुख और शांति से जीवन जीने के लिए आदमी को जीयो और जीनो के सिद्धांत पर चलने का प्रयास करना चाहिए। जिस प्रकार आदमी को स्वयं के शांति की अपेक्षा होती है तो आदमी को यह प्रयास करना चाहिए कि वह भी किसी भी प्राणी के शांति में बाधक न बने। इसमें आध्यात्मिक रूप से यह कहा जा सकता है कि शांति और संयम से युक्त जीवन जीयो और जीने दो की अनुपालना हो तो जीवन अच्छा हो सकता है। आदमी को अपने जीवन में संयम और शांति रखने का प्रयास करना चाहिए। किसी भी जीव को स्वयं के द्वारा कष्ट न पहुंचे, उसकी शांति भंग न हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। आदमी को संयमयुक्त जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। अध्यात्म की दृष्टि से स्वयं जगा और दूसरों को भी जगाने का प्रयास हो। भय, लोभ, गुस्सा, लालसा, कामना से जीवन में अशांति आती है। इसलिए भगवान शांतिनाथ से प्रेरणा लेकर भय, लोभ, गुस्सा और लालसा का त्याग कर शांतिमय जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। 

उक्त पावन शांतियुक्त जीवन जीने की प्रेरणा जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सोमवार को गोरेगांव के बांगुरनगर में स्थित बांगुर स्पोर्टस काम्प्लेक्स परिसर में बने महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को प्रदान की। गोरेगांव प्रवास के अंतिम दिन आचार्यश्री ने समुपस्थित जनता को अभिप्रेरित करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में कोई परेशानी भी आए तो उसके लिए उसे चिंता नहीं चिंतन करने का प्रयास करना चाहिए। चिंतन से कोई मार्ग प्रशस्त हो सकता है। अपने दिमाग को निरभार रखने का प्रयास करना चाहिए। संसारी व्यक्ति को परिवार को भरण-पोषण की चिंता भी हो सकती है, किन्तु वह चिंता सात्विक रूप में हो तो कार्य अच्छे रूप में हो सकता है। गुरुदेव तुलसी तो इतने बड़े धर्मसंघ के अधिनेता होते हुए भी शांति में रहते थे। डर न हो, लोभ न हो तो शांति बनी रह सकती है। इस प्रकार आदमी को अपने जीवन को शांति से युक्त बनाने का प्रयास करना चाहिए। 

आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज गोरेगांव प्रवास का अंतिम दिन है। जितना संभव हो, लोगों में धार्मिकता-आध्यात्मिकता की भावना बनी रहे। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने भी लोगों को उद्बोधित किया। 

अपने आराध्य की अभिवंदना में गोरेगांव मुम्बई की तेरापंथ महिला मण्डल, तेरापंथ महिला मण्डल-बांगुर नगर व संतोष नगर की सदस्याओं व गोरेगांव के उपासक-उपासिकाओं ने पृथक्-पृथक् स्वागत गीत का संगान किया। स्थानीय तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री रमेश सिंघवी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। 

 

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