दीक्षा अनंत की यात्रा मुनिश्री जिनेश कुमारजी
कोलकाता। युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री जिनेश कुमार जी ठाणा 3 के सान्निध्य में मध्य उत्तर कोलकाता श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा द्वारा दीक्षार्थी अभिनंदन एवं मंगलभावना समारोह का आयोजन ओसवाल भवन में किया गया।
इस अवसर पर उपस्थित धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने कहा- जैन धर्म में दीक्षा का बहुत बड़ा महत्व है। इच्छा का निरोध करना ही एक मायने में दीक्षा है। दीक्षा अनंत की यात्रा है। दीक्षा सहज नहीं कठिन कार्य है। वेशपरिवर्तन से साधुता नहीं आती हैं। साधुता प्रकट होती है स्वाध्याय जप, तप, ध्यान आदि से। दीक्षा का उद्देश्य आत्म हित, आत्म कल्याण होनी चाहिए। हमारा सतत लक्ष्य आत्मा की रक्षा होनी चाहिए। मेरी आत्मा दुर्गति में न जाए यह हमेशा ध्यान रखना चाहिए। जिस संघ ने हमें बहुत दिया उससे बहुत मिलता है उस संघ की सेवा के लिए सतत जागरूक रहना चाहिए। मुनिश्री ने आगे कहा- तेरापंथ में दीक्षित होने का अर्थ है - अहंकार और ममकार का विसर्जन। गुरुचरणों में सदैव समर्पित रहना'दीक्षार्थी अंकिता चौरड़िया, संजना पारख व संस्था में प्रवेश करने जा रही रिचा सांखला अध्यात्म क्षेत्र में उन्नति करते हुई संघ व संघपति का सदैव आराधना करती रहे। बाल मुनिश्री कुणाल कुमार जी ने सुमधुर गीत का संगान किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि गुडिया मिशन के संन्यासी ऋषिकेश महाराज ने अपने विचार व्यक्त करते हुए दीक्षार्थी बहनों के प्रति मंगलभावना व्यक्त की। दीक्षार्थी अंकिता चोरड़िया, दीक्षार्थी संजना पारख ने अपने वैराग्य भावों को प्रस्तुति देते हुए दीक्षा के निमित्त वाचिक हिंसा का त्याग करने का आह्वान किया पारमार्थिक शिक्षण संस्था में प्रवेश करने जा रही सुश्री रिचा सांखला ने भी अपने विचार व्यक्त किये।कार्यक्रम का शुभारंभ मध्य कोलकाता तेरापंथ महिला मंगल की बहनों के मंगलगीत से हुआ। स्वागत भाषण एवं दीक्षार्थी परिचय उपाध्यक्ष रुपचंद्र जी श्रीमाल ने दिया। दक्षिण हावड़ा तेरापंथी सभा के मंत्री बसंत पटावरी, संपत बरमेचा ने अपने विचार व्यक्त किये। सुभाष गुजरानी' ने आभार ज्ञापन व कार्यक्रम का संचालन मुनिश्री परमानंद व आदित्य संचेती ने किया। अतिथियों व दीक्षार्थियों का तेरापंथी सभा द्वारा सम्मान किया गया। इस अवसर पर दक्षिण कोलकाता तेरापंथ महिला मंडल द्वारा गीत भी प्रस्तुत किया गया,।