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प्रतिष्ठानों पर गुजराती में अनिवार्य लेखन के नियम पर मनपा प्रशासन ने शुरू की कार्रवाई

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पूर्व पार्षद विजय पानशेरिया ने मुख्यमंत्री से की थी शिकायत, भेजे जा रहे हैं प्रतिष्ठानों को नोटिस

राज्य के सभी सरकारी कार्यालयों से लेकर सार्वजनिक जगहों,स्कूल,कॉलेज और प्रतिष्ठानों पर गुजराती भाषा में लिखना अनिवार्य होने की अधिसूचना पर अब दो साल बाद सूरत मनपा ने अमल शुरू किया है। पूर्व पार्षद विजय पानशेरिया की ओर से इसे लेकर मुख्यमंत्री से शिकायत की गई थी। इसके बाद मनपा प्रशासन हरकत में आया है और अब जहां अधिसूचना का भंग हो रहा है, वैसे प्रतिष्ठानों को नोटिस भेजना शुरू किया है।

वर्ष 2022 में राज्य सरकार के खेल, युवा एवं सांस्कृतिक प्रवृत्ति विभाग की ओर से प्रस्ताव पारित

कर राज्य के सभी सरकारी कार्यालयों, परिसरों और सार्वजनिक जगहों के साथ प्रतिष्ठानों पर अंग्रेजी और हिंदी के साथ ही गुजराती भाषा में लिखावट अनिवार्य किया था, लेकिन शहर में इसका अमल होते नहीं दिख रहा था। मनपा प्रशासन भी इसे लेकर गंभीर नजर नहीं आ रहा था। जिससे पूर्व पार्षद विजय पानशेरिया ने मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल को पत्र लिखकर मनपा प्रशासन के रवैये को लेकर शिकायत की थी और दो वर्ष पूर्व जारी अधिसूचना का अमल करवाने की मांग की थी। पूर्व पार्षद की शिकायत के बाद अब मनपा प्रशासन हरकत में आया है और अधिसूचना का उल्लंघन करने वाले प्रतिष्ठानों को नोटिस भेजना शुरू किया है।
[गुजराती भाषा नहीं, गौरवाशाली साहित्य संस्कृति
परिपत्र में कहा गया है कि गुजराती भाषा केवल एक भाषा नहीं बल्कि विशाल गौरवशाली इतिहास और समृद्ध साहित्य रखने वाली संस्कृति है। एक मई 1960 को गुजरात राज्य की स्थापना हुई तब से ही राज्य की राजभाषा गुजराती के साथ हिंदी भी रखी गई है। एक मई 1965 को सचिवालय, जिला, तहसील स्तर पर गुजराती भाषा में कार्य के निर्देश दिए थे। इसके अलावा गुजराती भाषा के प्रचार प्रसार के लिए रामलाल परीख समिति गठित की थी। इस समिति ने राज्य सरकार का प्रशासन गुजराती भाषा में चलाने की सिफारिश की है।

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