जैन धर्म की दो धाराओं का आत्मीय मिलन
- गुरूदेव का दो दिवसीय प्रवास प्राप्त कर अड़ाजन–पाल वासी हुए निहाल
अड़ाजन–पाल, सूरत युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी चतुर्विध धर्मसंघ के साथ सूरत शहर के कोने कोने को अध्यात्म की आभा से ज्योतित कर रहे है। पर्वत पाटिया, अमरोली, कतारगाम आदि क्षेत्रों को पावन बना दो दिवसीय प्रवास के अंतर्गत अड़ाजन–पाल क्षेत्र में प्रवास रत आचार्यश्री के दर्शन सेवा हेतु एक ओर जहां लोगों का तांता लगा हुआ है वहीं इन दो दिनों में अनेकानेक जैन संप्रदाय के आचार्य भगवंत तथा साधु–साध्वियों से आचार्य श्री की आध्यात्मिक भेंट हुई। गुरु राम पावन भूमि में आचार्य श्री रश्मिरत्न सुरी जी से आचार्यश्री का आध्यात्मिक मिलन हुआ वहीं से प्रवास स्थल के समीप ही राज विहार में गच्छाधिपति आचार्य श्री राजशेखर सुरीश्वर जी से अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी का आध्यात्मिक स्नेह मिलन हुआ एवं धर्म चर्चा हुई। जैन एकता के प्रबल संवाहक आचार्यश्री महाश्रमण जी के पावन प्रवास से मानों सकल जैन समाज में एक नई जागृति आई हुई है। स्थानीय तेरापंथ सभा के भवन हेतु निर्धारित भूमि पर भी गुरुदेव द्वारा मंगलपाठ प्रदान किया गया। सूरत प्रवास के अंतिम पड़ाव के रूप में कल जहांगीरपुरा में महावीर संस्कार धाम में मंगल भावना समारोह एवं प्रवास व्यवस्था समिति द्वारा ध्वज हस्तांतरण का कार्यकम समायोजित होना है।
मंगल प्रवचन में धर्म देशना देते हुए आचार्य श्री ने कहा –छह द्रव्यों में काल भी एक प्रकार का द्रव्य है। समय कभी ठहरता नहीं सदा प्रवाहमान होता है। पानी के प्रवाह को तो फिर भी पाल बांधकर रोका जा सकता है पर समय के प्रवाह को रोकने की क्षमता किसी में नहीं होती। मेघ का पानी समान रूप से सभी को मिलता है, सूर्य का प्रकाश भी सबको सामान प्राप्त होता है व चांद की चांदनी भी। इनके लिए ऐसा नहीं है कि ये रुपए लेकर प्रदान करते है। इसी प्रकार समय है। ये चारों चीजें मुफ्त में व्यक्ति हो प्राप्त होती है। फिर कोई चाहे छोटा हो या बड़ा व अमीर हो या गरीब इनका कोई शुल्क नहीं लगता। पैसे से तो बाजार में सब मिल जाता है पर ये चारों चीजें उदारता की श्रेणी में आती हैं। षट् द्रव्यों में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि सब द्रव्य बिना पैसे के उपलब्ध होते है इसलिए उदार हैं व किसी में भेदभाव नही रखते।
गुरुदेव ने आगे फरमाया कि षट् द्रव्यों में जीवास्तिकाय एक दूसरे का सहयोग करते हैं। तत्वार्थ सूत्र में कहा गया है – परस्परोपग्रह जीवानाम। अर्थात जीव परस्पर एक दूसरे का सहयोग करते है। सामुदायिक जीवन एक दूसरे के सहयोग से चलता है। मुफ्त व बिना मूल्य के मिलने वाली चीज का भी अवमूल्यन न हो। हम समय के हर भाग का भी सही उपयोग करें तो इस जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।
इस अवसर पर डोम्बिवली, मुंबई में चातुर्मास संपन्न कर समागत मुनि नमी कुमार जी, मुनि अमन कुमार जी, मुनि मुकेश कुमार जी ने विचार रखे। मंच संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।
स्वागत अभिव्यक्ति के क्रम में साध्वी मेधावी प्रभा जी, श्री सुनील गुगलिया, श्री मुक्ति भाई परीख, मुमुक्षु कल्प, उपासक अशोक भाई संघवी ने भावाभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला के बच्चों ने आचार्यश्री के जीवन परिचय पर प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम में जैन विश्व भारती के मंत्री श्री सलिल लोढ़ा ने अपने विचार प्रकट किए। सम्मानित सदस्यों द्वारा साहित्य वाहिनी की चाबी जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री अमरचंद जी लुंकड आदि पदाधिकारियों को गुरुदेव सन्निधि में भेंट की गई। श्री बालू भाई पटेल ने अपनी पुस्तक का गुरूदेव के समक्ष विमोचन किया।