पर्वाधिराज पर्युषण : दूसरा दिन स्वाध्याय दिवस के रूप में हुआ समायोजित
-युगप्रधान आचार्यश्री ने प्रारम्भ की ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ का वर्णन
-पर्युषण महापर्व में संभागी बनने हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति से चतुर्मास स्थल बना जनाकीर्ण
वेसु, सूरत।जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में पर्वाधिराज पर्युषण प्रारम्भ हो चुका है। आत्मा के कल्याण का यह महापर्व अपनी पूर्ण भव्यता के साथ मनाया जा रहा है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु अपने आराध्य की मंगल सन्निधि में पहुंच गए हैं और पूरे दिन और रात तक इस सुअवसर का लाभ उठा रहे हैं। चारों ओर मानों आध्यात्मिकता की रश्मियां प्रस्फुरित नजर आ रही हैं। लोगों को आध्यात्मिक लाभ प्रदान करने की महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की अनुज्ञा से साधु-साध्वियां भी पूर्ण जागरूकता के साथ जुटे हुए हैं। प्रातःकाल अर्हत् वंदना आदि के उपरान्त महावीर समवसरण में जनता जहां प्रेक्षाध्यान से क्रम से जुटी हुई दिखाई दे रही है तो उसके उपरान्त पच्चीस बोल के तात्त्विक विश्लेषण का श्रवण कर अपने जीवन में आध्यात्मिक ज्ञान की वृद्धि का प्रयास भी दिखाई देता है। आगम की वाणी का श्रवण और तदुपरान्त आचार्यश्री की मंगलवाणी से पूर्व साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यमुनिश्री, साध्वीवर्याजी तथा अन्य चारित्रात्माओं द्वारा अनेक विषयों पर आधारित व्याख्या अथवा गीत आदि के श्रवण का लाभ प्राप्त हो रहा है। इतना ही नहीं श्रद्धालुओं को दोपहर में भी चारित्रात्माओं के व्याख्यान का लाभ, फिर पुनः आचार्यश्री के प्रवास कक्ष में आगम वाचन के श्रवण को चारित्रात्माओं के साथ जनता भी उमड़ रही है। यह आध्यात्मिक क्रम देर रात तक चल रहा है।
पर्युषण महापर्व के दूसरे दिन सोमवार को महावीर समवसरण के मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री की मंगलवाणी से पूर्व तीर्थ और तीर्थंकर विषय पर मुनि सिद्धकुमारजी ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने क्षांति-मुक्ति धर्म पर आधारित गीत का संगान किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने क्षांति-मुक्ति धर्म को विवेचित किया। साध्वी प्रीतिप्रभाजी ने स्वाध्याय दिवस पर आधारित गीत का संगान किया। तदुपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने स्वाध्याय दिवस के संदर्भ में उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान किया।
अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पर्युषण महापर्व के दूसरे दिन सोमवार को महावीर समवसरण व उसके आसपास उपस्थित विशाल जनमेदिनी को ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ के प्रसंग का प्रारम्भ करते हुए कहा कि जम्बूद्वीप के पश्चिम विदेह में स्थित एक नगरी जयंती के राजा शत्रुमर्दन का वर्णन करते हुए भगवान महावीर के वर्णित पूर्व के वर्णित 27 भवों की व्याख्या क्रम को प्रारम्भ किया। आचार्यश्री ने भगवान महावीर की नयसार में स्थित आत्मा के विषय में प्रेरणा प्रदान की।
तत्पश्चात आचार्यश्री स्वाध्याय दिवस पर उपस्थित विशाल जनमेदिनी को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि ज्ञान से आदमी पदार्थों को जानता है। ज्ञान के विकास के लिए स्वाध्याय सहयोगी बन सकता है। ज्ञान दो प्रकार का हो सकता है-एक ज्ञान भीतर से उठता है और दूसरा पुस्तकों अथवा दूसरों से सुनकर प्राप्त होता है। भीतर से उठने वाला ज्ञान मानों कुएं के पानी के समान है तो दूसरों से अथवा पुस्तकों से प्राप्त ज्ञान कुण्ड के समान है। जितना उसमें डाला गया है, बस उतना ही प्राप्त किया जा सकता है। स्वाध्याय के द्वारा बाहर से लिया जाने वाला ज्ञान संगृहीत हो सकता है। स्वाध्याय के आदमी को पहले स्वयं को पढ़ना होता है, जिज्ञासा होने पर पूछना चाहिए। वाचना से प्राप्त ज्ञान और पूछने से जाने गए ज्ञान को मजबूत करने के लिए ज्ञान का चिताड़ना करने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान की अनुप्रेक्षा की जाए तो कोई नई बात भी सामने आ सकती है। उसके बाद आदमी को अपने ज्ञान का परोपकार के रूप में प्रयोग करने का प्रयास करना चाहिए। धर्मकथा के माध्यम से लोगों को भी उस ज्ञान से अवगत कराने का प्रयास करना चाहिए। हमारे कितनी चारित्रात्माएं आगम के कार्य से जुड़े हुए हैं। आदमी को स्वाध्याय का विकास करने का प्रयास करते रहना चाहिए।