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श्वास, श्रद्धा और विश्वास: जीवन के तीन स्तंभ - आचार्य श्री यशोवर्म सूरीश्वरजी

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गिरधर नगर संघ में आचार्य यशोवर्म सुरिश्वरजी का प्रभावशाली प्रवचन: "शरीर चले श्वास से, परिवार चले विश्वास से"

अहमदाबा।गिरधर नगर संघ में आज आचार्य भगवंत श्री यशोवर्म सूरीश्वरजी के प्रवचन ने उपस्थित जनसमूह को गहराई से प्रभावित किया। उनके शब्दों ने एक सजीव चित्र प्रस्तुत किया"शरीर चले श्वास से, परिवार चले विश्वास से"जिसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं की गहन विवेचना की गई।

आचार्यश्री ने अपने प्रवचन में समझाया कि जैसे शरीर को चलाने के लिए श्वास आवश्यक है, वैसे ही परिवार के सुचारू संचालन के लिए विश्वास का होना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि श्रद्धा से आध्यात्मिक जीवन में स्थिरता आती है, और श्वास की तरह ही यह हमें जीने का सही मार्ग दिखाती है। संवाददाता दिनेश देवड़ा धोका के अनुसार, आचार्यश्री ने बड़ी सादगी और प्रभाव के साथ यह संदेश दिया कि विश्वास के बिना कोई भी रिश्ता टिक नहीं सकता।

आचार्यश्री ने उदाहरण देते हुए कहा कि जिस प्रकार एक छत में आई दरार पूरे मकान को पानी से तरबतर कर देती है, वैसे ही विश्वास में आई दरार पूरे परिवार को बिखेर सकती है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि जीवन की घटनाएँ हमें उतना दुख नहीं देतीं, जितना उन घटनाओं से हमारा जुड़ाव हमें पीड़ा देता है।

उन्होंने परिवार में बदलते मूल्यों पर भी चर्चा की, जहां पहले कम साधनों में अधिक प्रेम था, लेकिन अब अधिक साधनों के साथ भी प्रेम में कमी आ गई है। आचार्यश्री ने मोबाइल फोन के प्रभाव पर भी टिप्पणी की, कहते हैं कि जेब का मोबाइल हमें अपनों से दूर ले जाता है, जबकि चेहरे की मुस्कान लोगों को करीब लाती है।

प्रवचन का सबसे महत्वपूर्ण संदेश यह था कि विश्वास ही परिवार का आधार है। जब अपनों पर से विश्वास उठ जाता है, तभी परिवार में तकलीफों का आगमन होता है। आचार्यश्री ने कहा कि अविश्वास एक दीमक की तरह है, जो पूरे परिवार को अंदर से खोखला कर देता है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि विश्वास की कमी व्यक्ति को जीते जी मार देती है, जबकि श्वास की कमी केवल शारीरिक जीवन को समाप्त करती है।

आचार्यश्री का प्रवचन इस सारगर्भित संदेश के साथ समाप्त हुआ कि श्रद्धा, श्वास और विश्वास तीनों ही जीवन के स्तंभ हैं, और इनके बिना जीवन असंतुलित हो जाता है। गिरधर नगर संघ के लोगों के लिए यह प्रवचन न केवल एक चेतावनी थी, बल्कि एक नई दृष्टि भी दी, जिससे जीवन और परिवार को नई दिशा मिल सके।

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