सूरत ।राजू तातेड़
सुरत।पाल स्थित कुशल कांति खरतरगच्छ जैन संघ के तत्वाधान में चल रहे चातुर्मास में नियमित प्रवचन में आज विशेष प्रवचन में धर्म सभा को संबोधित करते हुवे खरतर गच्छाधिपति आचार्य श्री जिन मणिप्रभसूरीश्वर जी म.सा. ने कहा कि आज श्रावण शुक्ल की पंचमी को अरिहंत परमात्मा श्री नेमीनाथ भगवान का जन्म कल्याणक दिवस है ।
इस अवसर पर उन्होंने कहा कि जिस प्रेम में स्वार्थ न हो या आत्मा के विकास की बात हो वही सच्चा प्रेम है,जिस प्रेम में लेने देने की बात नहीं हो,वही सच्चा प्रेम होता है। नेमकुमार का प्रेम भवो-भवो का प्रेम था,लेकिन राजमति का प्रेम अल्प समय का प्रेम था ।
जैन धर्म में 24 तीर्थंकर में से दो ऐसे तीर्थंकर थे,जिन्होंने विवाह नहीं किया था।श्री मल्लीनाथ भगवान एवं नेमीनाथ भगवान
नेमकुमार तीन ज्ञान के धनी थे, उनको मालूम था कि मेरा विवाह नहीं होना है, फिर भी लाखो बारातियों के साथ बारात निकली।उनको दुनिया को करुणा का अहिंसा का बोध देना था।राजमति नौ भवो से नेमकुमार का इंतजार कर रही थी।दोनो एक दुसरे से सच्चा प्रेम करते थे ।
नेमकुमार की बारात शाम के समय में गोधूली बेला पर आनी थी और उसी समय पशुओं के आने का समय था तो राजा के सैनिकों ने निर्णय लिया कि लाखों लोगो की बारात में किसको तकलीफ नहीं हो, इसलिए वही पर अस्थाई बाड़ा बनाकर पशुओं को रोका गया था। पशुओं को ऐसा लगा कि हो सकता है कि हमारी हत्या कर दी जावे तो सभी पशुओं में चीख चित्कार होने लगी और उसी समय नेमकुमार की बारात का समय हो गया।
नेमकुमार ने पशुओं को चीख की आवाज सुनी और सारथी को रथ रोकने को सभी पशुओं को मुक्त करने का आदेश दिया।उस समय पशुओं के चहरे के भाव पढ़ने और देखने लायक थे। इस तरह से नेमकुनार ने पशुओं को छुड़ाकर पुनः घर को लौट गए और गिरनार पर्वत पर पहुंच कर संयम जीवन अपना लिया।
जन्म कल्याणक के पावन अवसर और श्री गिरनार की भाव यात्रा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम उपाध्याय श्री मनितप्रभसागर जी म.सा. के द्वारा पूरे इतिहास के साथ प्रस्तुत किया गया। संगीतकार महावीर देसाई के नेमीनाथ भगवान के गीत की भक्ति की गई।