-मुमुक्षु राहत को दीक्षा प्रदान कर आचार्यश्री ने दिखाया मोक्ष का मार्ग
-लम्बे समय बाद गुरुदर्शन करने वाले चारित्रात्माओं ने व्यक्त किए भावपूर्ण उद्गार
-उपसंपदा ग्रहण के साथ प्रारम्भ हुआ अष्ट दिवसीय प्रेक्षाध्यान शिविर का शुभारम्भ
-महाप्रज्ञ विद्या निकेतन के विद्यार्थियों ने दी अपनी विभिन्न प्रस्तुतियां, प्राप्त किया आशीर्वाद
कोबा, गांधीनगर।भारत के समृद्ध राज्य गुजरात की राजधानी में 21 दिवसीय प्रवास के दूसरे दिन कोबा में स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में शुक्रवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जैन भगवती दीक्षा प्रदान मोक्ष का मार्ग प्रशस्त किया तो वहीं आचार्यश्री ने उपसंपदा प्रदान करते हुए अष्ट दिवसीय प्रेक्षाध्यान शिविर के शिविरार्थियों को पावन प्रेरणा भी प्रदान की।
कोबा में स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में त्रिदिवसीय प्रवास कर रहे महातपस्वी महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में वर्ष 2023 का प्रथम जैन भगवती दीक्षा समारोह का आयोजन हो रहा था। प्रातः नौ बजे ही भक्तों की उपस्थिति से आचार्य महाश्रमण सभागार भर गया। प्रातः नौ बजे आचार्यश्री मंचासीन हुए और नमस्कार महामंत्र से समारोह का शुभारम्भ किया। मुमुक्षु रक्षा ने दीक्षार्थिनी राहत (गढ़ सिवाना-बेंगलुरु) का परिचय प्रस्तुत किया। पारमार्थिक शिक्षण संस्था की ओर से श्री धनराज भंसाली ने आज्ञा पत्र का वाचन किया। दीक्षार्थिनी के भाई श्री दीक्षांत ललवाणी ने आज्ञा पत्र को आचार्यश्री के करकमलों में समर्पित किया। दीक्षार्थिनी राहत ने अपनी आस्थासिक्त भावों को अभिव्यक्ति दी।
साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी ने ‘जैन तेरापंथ की दीक्षा’ आदि विषयों को व्याख्यायित करते हुए जनता को उद्बोधित किया। तदुपरान्त महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि जीवन का त्याग का बड़ा महत्त्व होता है। राग से दुःख और त्याग से सुख की प्राप्ति होती है। दुनिया के सभी दुःखों के मूल में राग होता है। जो वीतराग बन जाता है, वह दुःखों का अंत पा लेता है। जीवन में त्याग द्वारा राग को कम अथवा प्रतनु बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। भौतिकता की चकाचौंध में भी राग से त्याग की दिशा में आगे बढ़ जाना बहुत ऊंची बात होती है। दीक्षा ग्रहण करने का अर्थ है व्रत और नियमों का स्वीकरण। हमारे धर्मसंघ में तीनों अवस्थाओं में दीक्षा हो सकती है। ‘टिन एज’ में दीक्षा स्वीकार करना भी अच्छी बात होती है। हमारे मुख्यमुनि ने भी ‘टिन एज’ (किशोरावस्था) में दीक्षा स्वीकार की थी और अपने साधु जीवन का पहला चतुर्मास इसी प्रेक्षा विश्व भारती में किया था।
आचार्यश्री ने दीक्षा समारोह के संदर्भ में दीक्षार्थिनी के परिजनों से मौखिक आदेश, दीक्षार्थिनी के भावों का अंतिम परीक्षण करने के उपरान्त समस्त पूर्वाचार्यों का स्मरण करते हुए आर्षवाणी का उच्चारण करते हुए दीक्षा प्रदान की प्रक्रिया प्रारम्भ की। आचार्यश्री ने अतीत की आलोचना कराई। साध्वीप्रमुखाजी ने केशलोच कर रजोहरण प्रदान किया। आचार्यश्री ने नवदीक्षित साध्वी का नामकरण करते हुए साध्वी राहतप्रभा नाम प्रदान किया। आचार्यश्री की उद्घोषणा से पूरा प्रवचन पंडाल गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री ने शुभाशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि आहत को राहत प्रदान करने वाली बनो। समुपस्थित जनमेदिनी ने नवदीक्षित साध्वी को वंदन किया।
आचार्यश्री ने कुछ क्षण समुपस्थित जनता को प्रेक्षाध्यान भी कराया और जीवन में त्याग और संयम को बढ़ाने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री के प्रेक्षा विश्व भारती प्रवेश के अवसर पर अनेक चारित्रात्माओं ने आचार्यश्री के दर्शन किए तो आचार्यश्री ने उन्हें भी मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। अपने आराध्य के चरणो में पहुंचे चारित्रात्माओं की आंतरिक प्रसन्नता उनके हृदयोद्गार में स्पष्ट दिखाई दे रही थी। मुनि मदनकुमारजी, मुनि सिद्धार्थकुमारजी व साध्वी सरस्वतीजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। साध्वीजी ने अपनी सहवर्ती साध्वियों संग गीत का संगान भी किया।
महाप्रज्ञ विद्या निकेतन के विद्यार्थियों ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। कुछ विद्यार्थियों ने गीत का संगान किया। तदुपरान्त कई विद्यार्थियों ने योग के विभिन्न मुद्राओं की सुन्दर प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में आशीष प्रदान करते हुए कहा कि छात्रों ने अपनी विभिन्न प्रस्तुतियां दी हैं। प्रशिक्षण के द्वारा शरीर और मन को साधने में सफलता प्राप्त हो सकती है। इसके साथ-साथ अच्छे संस्कारों का भी विकास होता रहे।
आज प्रवचन पंडाल में आचार्यश्री के समक्ष अष्ट दिवसीय प्रेक्षाध्यान शिविर के शिविरार्थी भी समुपस्थित थे। आचार्यश्री ने उन्हें उपसंपदा प्रदान करते हुए विविध प्रेरणाएं प्रदान की। इस प्रकार अष्ट दिवसीय प्रेक्षाध्यान शिविर का मंगल शुभारम्भ हुआ।