सूरत। शहर के पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन पाल में युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. की मंगल सन्निधि में चातुर्मास चल रहा है। गुरूवार 17 अक्टूबर को प्रवचन में मनितप्रभ म.सा. ने कहा कि संसार में अनंत कर्म है और हम कर्म से घिरे हुए है। पापों से मुक्त होने का माध्यम तपश्चर्या है। केवल शरीर तपाने से कुछ नहीं होगा। अपने मन को तपावे। जिसने तप को समझा है उसने जीवन को समझा है। तप, प्रेम, मित्र शब्द बहुत छोटे है, लेकिन बहुत महत्वपूर्ण है। तप अजोड, बेजोड है। इच्छाओं को नियंत्रित करना ही तप है। पांच आचारों में से एक तपाचार है। सम्यक दर्शन में भी तपना पड़ता है। पदार्थ में कोई सार नहीं है, वहां पर भी तपश्चर्या है। चारित्र तपश्चर्या के बिना परिपूर्ण नहीं हो सकता। तप उसी प्रकार है, जैसे दूध में घी का होना। धरती में धीरता, वीरों में वीरता रहती है वैसे ही तप सर्वत्र समाया है। जहां जहां धर्म है, वहां तप है। इंद्रियों और विकारों को जीतना तप है।