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संस्कार का दूसरा नाम ही चरित्र है : मनितप्रभ म.सा.

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सूरत। शहर के पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन पाल में युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. की मंगल सन्निधि में नवपद ओली आध्यात्मिक अनुष्ठान का क्रम चल रहा है। आज बुधवार 16 अक्टूबर को प्रवचन में माहितप्रभ सागर ने कहा कि हमारी आर्य, जैन संस्कृति है, उसे हम विनाश की ओर ले जा रहे है। हमें एक्शन का रिएक्शन नहीं करना चाहिए। आज की पीढ़ी पर बोलते हुए कहा कि  आज की जनरेशन बहुत ही संवेदनशील और एक्टिव है। 
मनितप्रभ म.सा. ने कहा कि हमने संसार के प्रति अलग राय बनाकर रखी है। जहर को अमृत का नाम, कांटो को फूलों का नाम दे दिया जाए तो क्या होगा। हमारे अंदर पूर्वाग्रह, हटाग्रह पनपे हुए है। इस पर क्रोध, माया, मिथ्या के विषले फल आ रहे है। इसकी जो संयम की जो जड़ है। नवपद ओली आराधना सबसे बड़ी आराधना है। नवपद के शिवाय इस दुनिया में सार कुछ भी नहीं है। साधक वह जो अपने साध्य को सिद्ध करना चाहता है। श्रावक बनना जरूरी है। संस्कार का दूसरा नाम ही चरित्र है। जहां पर संस्कार चले जाते है, वहां पर विकार आ जाते है।

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