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चेन्नई-तपस्या तन-मन शुद्धि का साधन : मुनि सुधाकरजी

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कुसुमलता खिवसरा ने लिया मासखमण तप का प्रत्याख्यान

  माधावरम,चेन्नई।तप कर्म निर्जरा का अमोघ साधन है। तप से जहां आत्मा उज्जवला को प्राप्त होती है, वहीं तन-मन की शुद्धि में सहायक बनती है,सहयोगी बनती हैं। उपरोक्त विचार श्रीमती कुसुमलता खिवसरा के मासखमण तप की अनुमोदना जय समवसरण,जैन तेरापंथ नगर,माधावरम,चेन्नई में मुनि श्री सुधाकरजी ने कहें।
  मुनि श्री ने कहा मजबूत मनोबल, दृढ़ संकल्पशक्ति, विशिष्ट इच्छाशक्ति से ही तप के मार्ग पर आरुढ़ हो सकते है।भगवान महावीर ने मोक्षप्राप्ति के चार मार्गो में एक मार्ग तप को बताया है। बहन कुसुमलता खिवसरा ने अपने आत्मबल को उजागर कर मासखमण तप के पूर्णता की ओर है।उनके स्वयं की शक्ति के साथ परिवार का सहयोग भी साधुवाद के समान है।वे तपो:मार्ग पर निरन्तर आगे बढ़ती रहे,मंगलकामना।
  मुनि श्री विशेष प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि विचारों की शुद्धि और पवित्रता से अहिंसा की साधना की जा सकती है।इर्ष्या और लालच की मनोवृति मानसिक हिंसा है।आज चारों और अहंकार-टकराव बढ़ रहा है।धार्मिक लोगों के व्यवहार में उदारता की भावना का विकास जरूरी है।जो महापुरुष होते हैं,वे सब के प्रति विनम्र होते हैं।हमारे मस्तिष्क में हिंसा के बीज भी हैं और अहिंसा के भी।हमें हिंसा के बीज को मिटाकर अहिंसा के बीजों को अंकुरित और विकसित करना चाहिए।
मुनि श्री नरेशकुमारजी ने कहा कि सरलता,विनम्रता, नम्रतापूर्वक व्यवहार जीवन के उच्च शिखरों की ओर ले जाता हैं।श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ माधावरम ट्रस्ट द्वारा समायोजित तपोभिनन्दन में प्रबंध न्यासी घीसूलाल बोहरा, महिला मण्डल अध्यक्षा पुष्पा हिरण,तेयुप अध्यक्ष विकास कोठारी,अणुव्रत समिति सहमंत्री स्वरूप चन्द दाँती, जेटीएन के नवमनोनीत अध्यक्ष माणकचन्द रांका ने अपने व्यक्तव्य,गीत के द्वारा तपस्वी के तप की अभिवन्दना की।माधावरम की बहनों ने लघुनाटिका के साथ तप की महिमा बताई।कुशल संचालन सुरेश रांका ने किया। ट्रस्ट बोर्ड द्वारा तपस्वी बहन को तपोभिनन्दन पत्र, साहित्य प्रदान किया गया।

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