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जो प्रकृति से अच्छा, उसे प्राप्त हो सकता है मोक्ष : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

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-भुजवासी निरंतर कर रहे हैं अपने सुगुरु की अमृतवाणी का रसपान 

 

-आचार्यश्री ने श्री जीगर मेहता को मुमुक्षु के रूप में साधना करने की दी स्वीकृति

 

10.02.2025, सोमवार,भुज,कच्छ।लगभग बारह वर्षों के बाद भुज की धरा पर आध्यात्मिक कीर्तिमानों की सौगात लेकर पहुंचे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ वर्तमान में भुज में सत्रहदिवसीय प्रवास कर रहे हैं। अपने ऊपर अपने आराध्य की इतनी कृपा प्राप्त कर भुज का जन-जन हर्षविभोर बना हुआ है। भुजवासी भी आचार्यश्री से प्राप्त होने वाली आध्यात्मिक सौगातों को बटोरने में जुटे हैं तो कुछ उसे और वृद्धिंगत करने का प्रयास भी कर रहे हैं। आचार्यश्री ने भुज में गुजरात की धरती का प्रथम मर्यादा महोत्सव व तेरापंथ धर्मसंघ का 161वां मर्यादा महोत्सव कर नव कीर्तिमान का सृजन किया तो दूसरी ओर आचार्यश्री ने भुज की धरा पर आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के दीक्षा दिवस के अवसर पर एक दीक्षार्थी को साधु दीक्षा प्रदान कर एक और नव कीर्तिमान की सृजन किया। अब भुजवासियों की ओर से शनिवार को एक और युवक ने स्वयं को आचार्यश्री के समक्ष मुमुक्षु रूप में साधना करने की प्रार्थना लेकर उपस्थित हुआ तो आचार्यश्री ने उसे मुमुक्षु रूप में साधना करने की स्वीकृति भी प्रदान कर दी। 

सोमवार को कच्छी पूज समवसरण में उपस्थित श्रद्धालु जनता को तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि जैनिज्म में मोक्ष की बात आती है। नौ तत्त्वों में अंतिम तत्त्व मोक्ष है। मोक्ष की स्थिति में पाप-पुण्य, आश्रव, संवर, निर्जरा आदि-आदि का कोई प्रभाव नहीं होता, वहां सभी कर्मों से मुक्त आत्मा होती है। साधना का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है अथवा होना चाहिए। साधुपन लेना अथवा श्रावक व्रत स्वीकार करना और इसके अलावा भी अनेक-अनेक प्रकार से धर्म-ध्यान, आराधना व साधना का मूल लक्ष्य है मोक्ष की प्राप्ति। मानव जीवन के चौदह गुणस्थान मानों मोक्ष प्राप्ति की सीढ़ियां आती हैं। इन पर आदमी अपने कर्मों के आधार पर क्रमशः आरोहण करते हुए मोक्षश्री का वर्णन कर सकता है। चौदह गुणस्थानों से ऊपर उठकर ही मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है। 

हमारे जैन आगम में मोक्ष की प्राप्त होती है। साधु संस्था का मूल लक्ष्य मोक्ष ही होता है। आदमी को अपनी प्रकृति को शांत रखने का प्रयास करना चाहिए। मुमुक्षु बाइयां भी सम्मुख हैं तो उन्हें भी अपने व्यवहार में सौम्यता और शांति रखने का प्रयास करना चाहिए। जो आदमी चण्ड है, तेज गुस्से वाला आदमी होता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। आदमी को घमण्ड से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी ज्ञान होने के बाद भी अधिकतर मौन रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के पास दान की क्षमता हो और उसके साथ नाम ख्याति प्राप्त करने की भावना से बचने का प्रयास करना चाहिए। कहीं कुछ दान आदि भी किया तो नाम की, ख्याति की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए। नाम-ख्याति की भावना से बचने का प्रयास करना चाहिए। अहंकारी आदमी मोक्ष के लिए प्राप्त नहीं हो सकता। आदमी को अपनी प्रकृति को शांत बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। आवेश द्वारा प्रेरित निर्णय गलत हो सकता है और विवेकपूर्ण निर्णय अच्छा हो सकता है। 

आदमी के भीतर चिंतनशीलता होनी चाहिए। मोक्ष प्राप्ति के लिए आदमी को अपनी प्रकृति को अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए। गुस्से आदि का परित्याग करके भद्र और महान बनने का प्रयास हो मोक्ष की दिशा में गति हो सकती है। 

मुनि अनंतकुमारजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आज भुज से श्री जीगर मेहता अपने परिवार के साथ गुरुचरणों में अपनी भावना लेकर पहुंचा तो आचार्यश्री ने कृपा करते उसे मुमुक्षु के रूप में साधना करने की स्वीकृति प्रदान की। आचार्यश्री से ऐसा आशीष प्राप्त कर मेहता परिवार तो हर्षित तो था ही, पूरा प्रवचन पण्डाल जयघोष गुंजायमान हो उठा। 

मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री गुजराती भाषा के समाचार पत्र ‘कच्छ मित्र’ के कार्यालय में पधारे, जहां संपादक श्री दीपक मांकड़ आदि ने आचार्यश्री का भावपूर्ण स्वागत किया। आचार्यश्री ने समाचार पत्र के कार्यालय में विराजित होकर अखबार से जुड़े हुए लोगों को दर्शन-सेवा का अवसर भी प्रदान किया। आचार्यश्री ने वहां संबंधित लोगों को मंगलपाठ भी सुनाया। आचार्यश्री की इस कृपा को प्राप्त कर अखबार से जुड़े लोग अत्यधिक आनंद की अनुभूति कर रहे थे। 

 

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