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प्राप्त करने के बाद जिसका आनंद कम होता जाए वह संसार : आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी

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सूरत। शहर के पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ जैन श्री संघ पाल स्थित श्री कुशल क्रांति खतरगच्छ भवन में युग दिवाकर खरतरगच्छपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म. सा. ने आज शुक्रवार 26 जुलाई को प्रवचन में धर्म सभा को संबोंधित करते हुए कहा उत्तराध्ययन जैन सूत्र में गुरूवंत भगवतों के सामने अपना विनय प्रकट के तीन प्रकार बताये है। एक वचन विनय, दूसरा इगिताकार जो शिष्य गुरू के इशारे को समझ जाता है। तीसरा विनय है इच्छा विनय। वर्तमान में सबसे बड़ी समस्या विनय की है। अगर आपमें विनय है या नहीं? इसे पहचाने के लिए आपके अंदर निर्दोषता होनी चाहिए। साधना का क्षेत्र पाने के लिए नहीं है, साधना क्षेत्र प्रकट करने के लिए है। दोष मिटने पर गुण प्रकट होते है। प्राप्त करने के बाद जिसका आनंद कम होता जाए वह संस्कार है। आनंद में लगातार वृद्धि होती जाए उसका नाम संयम है। शनिवार से सिद्धितप की यात्रा प्रारंभ होगी।
संघ के अध्यक्ष ओमप्रकाश मंडोवरा तथा संघ के श्रावक दिलीप भंडारी ने विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि सोमवार से गौतम गणधर तप की भी शुरुआत होगी।

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