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एकेन्द्रिय जीव के भी होते हैं आठ कर्म : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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 -भगवती सूत्र के एकेन्द्रिय जीवों के सूत्र को आचार्यश्री ने किया व्याख्यायित

-प्रवास स्थल से ही आचार्यश्री ने बहाई ज्ञानगंगा

-साध्वीवर्याजी ने जनता को किया संबोधित

-संसारपक्ष में सूरत से संबद्ध मुनिवृंदों ने दी भावनाओं को अभिव्यक्ति  

सूरत।भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि एकेन्द्रिय कितने प्रकार के होते हैं? उत्तर दिया गया कि एकेन्द्रिय पांच प्रकार के होते हैं-पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजसकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय। हमारी दुनिया में दो ही चीजें हैं-जीव और अजीव। दुनिया में जो कुछ भी है या तो जीव अथवा अजीव। जीव और अजीव के अलावा दुनिया कुछ नहीं है। यह जगत इन दो तत्त्वों का सम्मिलित रूप है। अजीव मूर्त और अजीव अमूर्त होते हैं। जीव भी सिद्ध और संसारी होते हैं। संसारी आत्माएं शुद्ध नहीं होतीं। सिद्ध भगवान ही शुद्ध होते हैं। उनके साथ कर्म रूपी पुद्गल भी नहीं होते। संसारी जीवों के साथ कर्म लगे हुए रहते हैं। चौदहवें गुणस्थान में रहने वाले की आत्मा में भी कर्म लगे हुए होते हैं। 

संसार में एकेन्द्रिय प्राणी सबसे ज्यादा अविकसित प्राणी हैं। उनके पास एक ही इन्द्रिय स्पर्शन होती है। द्विन्द्रिय प्राणियों को स्पर्शन और रसन इन्द्रिय भी होती है। त्रिन्द्रिय प्राणी के स्पर्शन, रसन के साथ घ्राणेन्द्रिय भी होती है। कीड़े-मकोड़े त्रिन्द्रिय में आते हैं। मच्छर, मक्खी आदि जीव चतुरेन्द्रिय प्राणियों में आते हैं। इनमें चक्षुरेन्द्रिय का भी विकास हो जाता है। चार इन्द्रियों वाले इन्द्रियों की दृष्टि से पूर्ण विकसित नहीं होते। एकेन्द्रिय जीव स्थावर कहे जाते हैं। वे एक स्थान पर स्थिर रहने वाले होते हैं। इन पांचों के लिए बताया गया है कि इन जीवों के आठों कर्म प्रकृतियां होती हैं। सामान्य आदमी के भांति ही एकेन्द्रिय प्राणियों के भी आठ कर्म होते हैं। इनके भी कर्म का बंधन होता है और कर्म झड़ते भी हैं। इस प्रकार एकेन्द्रिय जीव भी आठ कर्मों वाले होते हैं। उक्त ज्ञानमयी गंगा की धारा को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को चतुर्मास स्थल भगवान महावीर युनिवर्सिटी में स्थित अपने प्रवास स्थल से ही श्रद्धालुओं को प्रदान कीं। 

बुधवार को आसमान बादलों से आच्छादित रहा और रुक-रुककर वर्षा का क्रम जारी रहा। सूरत में हो रही भारी वर्षा के कारण जलभराव की स्थिति यथावत रही। इसके बावजूद भी अपने दृढ़ संकल्पों के धनी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जनता को पावन देशना प्रवास स्थल से ही प्रदान की।  

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने भी जनता को उद्बोधित किया। संसारपक्ष में सूरत से सम्बद्ध मुनि हितेन्द्रकुमारजी, मुनि जागृतकुमारजी व मुनि अभिजितकुमारजी ने पूज्यप्रवर के स्वागत में अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। 

 

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