IMG-LOGO
Share:

सूरत में भगवती सूत्र के व्याख्यान क्रम को युगप्रधान आचार्यश्री ने किया प्रारम्भ

IMG

-भगवती सूत्र में वर्णित श्रुत आराधना को किया व्याख्यायित

-अनेक साध्वियों ने अपने आराध्य के समक्ष दी भावनाओं की अभिव्यक्ति 

 सूरत।जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अमृतमयी वाणी से ज्ञान की वर्षा कर सूरत शहरवासियों के आंतरिक तपिश का हरण कर रहे हैं तो दूसरी ओर श्रावण माह के प्रारम्भ से एक दिन पूर्व से आसमान से लगातार गिरती वर्षां की बूंदों पूरे सूरत शहर में जलभराव की स्थिति उत्पन्न कर दी है। कई सड़कों पर वाहन डूब हुए नजर आ रहे तो दूसरी ओर चतुर्मास प्रवास स्थल के अनेक स्थान भी इस भारी वर्षा से प्रभावित नजर आ रहे हैं। हालांकि प्रवास व्यवस्था की टीम द्वारा दिखाई जाने वाली तत्परता एवं समुचित व्यवस्था से परिसर में सभी श्रद्धालु समुचित रूप से चातुर्मास का लाभ उठा रहे है। मंगलवार को वर्षा का क्रम जारी था। इस कारण युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी प्रवचन पण्डाल में नहीं पधारे और प्रवास स्थल से ही उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान किया। आज से आचार्यश्री ने भगवती सूत्र आगम के व्याख्यान का क्रम भी प्रारम्भ किया। इसके पूर्व आचार्यश्री ने छापर व मुम्बई चतुर्मास के दौरान भी भगवती सूत्र के माध्यम से जनता को प्रतिबोध प्रदान किया है। 

मंगलवार को प्रवास स्थल से ही प्रवचन का निर्णय करने के उपरान्त युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता तथा महावीर समवसरण में उपस्थित जनसमूह को अत्याधुनिक तकनीकी माध्यम से प्रवचन पण्डाल में उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ में 32 आगम मान्य हैं। इनमें ग्यारह अंग, बारह उपांग, चार मूल, चार छेद और एक आवश्यक है। सभी 32 आगम हमारे धर्मसंघ द्वारा संपादित और प्रकाशित हैं। इनमें ग्यारह अंगों में एक है-भगवती सूत्र। इसका मूल नाम तो भगवई बिआह पणत्ति है, किन्तु इसे संक्षिप्त में भगवती सूत्र कहा जाता है। सभी आगमों में सबसे विशाल आगम है। इसमें संवादशैली काम में ली गयी है। कितने-कितने तत्त्वज्ञान आदि की बातें इसमें समाहित हैं। हमारे धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्यजी ने इस ग्रंथ पर राजस्थानी भाषा में पद्यात्मक रूप अर्थात राग-रागिणियों में इसकी व्याख्या की रचना की है। यह बहुत ही सम्माननीय ग्रंथ है। 

इससे पहले मैंने भगवती सूत्र के माध्यम से छापर चतुर्मास और मुम्बई चतुर्मास के द्वारा प्रवचन किया है। आज से सूरत में इसके माध्यम से व्याख्यान का क्रम प्रारम्भ कर रहा हूं। आचार्यश्री ने कहा कि भगवती सूत्र के 26वें शतक में भगवती श्रुत को नमस्कार किया गया है। भक्ति भाव से श्रुत की आराधना मानों जिनेश्वर देव की आराधना ही होती है। आदमी को अपने जीवन में श्रुत अर्थात् ज्ञान का खूब विकास करने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में बहुश्रुत बन जाना बहुत बड़ी बात होती है। ज्ञान के विकास के लिए लगन और प्रयास की आवश्यकता होती है। आदमी के भीतर स्थिरता, लगन और प्रयास हो तो आदमी ज्ञान के क्षेत्र में पारंगत हो सकता है। 

ज्ञान की प्राप्ति और ज्ञान का प्रदान करने वाले दोनों में पात्रता होनी चाहिए। ज्ञान देने वाला और ज्ञान लेने वाले दोनों सुपात्र हों, प्रतिभा और प्रज्ञा हो तो आदमी बहुतश्रुत बन सकता है। इस प्रकार भगवती सूत्र में श्रुत देवता को नमस्कार किया गया है। 

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वी त्रिशलाकुमारजी ने अपनी सहवर्ती साध्वियों के साथ गीत का संगान किया। साध्वी चैतन्ययशाजी,साध्वी राजश्रीजी,साध्वी धृतिप्रभाजी,साध्वी हिमश्रीजी,साध्वी मंजुलयशाजी व साध्वी अर्चनाश्रीजी ने अपने आराध्य के अभिवंदना में अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। 

 

Leave a Comment

Latest Articles

विद्रोही आवाज़
hello विद्रोही आवाज़

Slot Gacor

Slot Gacor

Situs Slot Gacor

Situs Pulsa

Slot Deposit Pulsa Tanpa Potongan

Slot Gacor

Situs Slot Gacor

Situs Slot Gacor

Login Slot

Situs Slot Gacor