चातुर्मास की संपन्नता होने पर मुनि श्री उदित कुमार जी ने तेरापंथ भवन उधना से किया विहार।
विशाल जुलूस के साथ श्रावक समुदाय ने मुनिश्री को दी भावपूर्ण विदाई।
सूरत।अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती मुनिश्री उदित कुमार जी ने उधना चातुर्मास की संपन्नता होने पर अपने सहवर्ती मुनि श्री अनंत कुमार जी, मुनि श्री रम्य कुमार जी और मुनि श्री ज्योतिर्मय कुमार जी के साथ तेरापंथ भवन, उधना से मंगल विहार कर चंदनवन सोसायटी में तेरापंथ सभा उधना के अध्यक्ष श्री बसंतीलालजी नाहर के निवास स्थान पर पधारे। इस अवसर पर उधना के विशाल श्रावक समुदाय ने अपने मार्गदर्शक मुनि श्री उदित कुमार जी को विशाल जुलूस के साथ भावपूर्ण विदाई दी।
इससे पूर्व तेरापंथ भवन में उपस्थित विशाल जन मेदिनी को संबोधित करते हुए मुनिश्री ने प्रदेश की राजा का व्याख्यान दिया।
मुनिश्री ने कहा -प्रदेशी राजा नास्तिक था। वह बुद्धिमान फिर भी कठोर शासक था। उसे धर्म के प्रति तनिक भी श्रद्धा नहीं थी। वह धीरे-धीरे नास्तिक समुदाय का नेता बन गया। भगवान पार्श्वनाथ के प्रबुद्ध शिष्य मुनि श्री केशीस्वामी ने उसे कठोरता और नास्तिकता का त्याग कर धर्म का मार्ग अपनाने की प्रेरणा दी। केशी स्वामी ने प्रदेशी राजा के अनेक प्रश्नों के उत्तर दिए। उसके सारे संदेहों का निरसन किया। केशी स्वामी के दिशा दर्शन और परामर्श से परदेसी राजा नास्तिक से आस्तिक बन गया। जब उसने भोग विलास का त्याग कर दिया तो उसकी पत्नी (महारानी) भी उसके साथ नहीं रही। इस दुनिया में ऐसा ही होता है। आदमी दूसरे आदमी का साथ तब तक देता है जब तक उसका स्वार्थ सधता है। जब स्वार्थ नहीं सधता है तो दोस्त भी दुश्मन बन जाता है।अपने भी पराये हो जाते हैं। महान वही होता है जो निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर परार्थ और परमार्थ के लिए अपने जीवन को समर्पित कर देता है। मुनि श्री ने उधना चातुर्मास के अंतर्गत कार्यकर्ताओं ने जो श्रम किया इसका उल्लेख करते हुए सभी कार्यकर्ताओं को अंतर्मन के आशीर्वाद प्रदान किए। कार्यक्रम का संचालन तेरापंथी सभा उधना के मंत्री सुरेश चपलोत ने किया।