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रह जाती हैं सिर्फ धुंधली सी यादें।

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स्कूल के चार करीबी दोस्तों ने एक ही स्कूल में कक्षा बारहवीं तक साथ-साथ पढ़ाई की। उस समय शहर में एक ही इकलौता लग्ज़री होटल था। कक्षा बारहवीं की परीक्षा के बाद उन्होंने तय किया कि हमें उस होटल में जाकर चाय-नाश्ता करना है। उन चारों ने मुश्किल से दो सौ रुपये जमा किए, रविवार का दिन था, और साढ़े दस बजे वे चारों साइकिल से होटल पहुँचे। केशव, संजय, माधव और रमेश चाय-नाश्ता करते हुए आपस में बातें करने लगे।
उन चारों ने सर्वसम्मति से फैसला किया कि आज से बीस साल बाद हम 01 अप्रैल को इस होटल में फिर से मिलेंगे।
 तब तक हम सब को बहुत मेहनत करनी चाहिए, बीस साल बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि किसने कितनी प्रगति की है।
   जो दोस्त उस दिन सबसे बाद में होटल पहुंचेगा, उसे उस दिन का होटल का बिल का भुगतान करना होगा।
     उनको चाय नाश्ता परोसने वाला वेटर दीपू यह सब सुन रहा था, उसने कहा कि अगर मैं यहाँ रहा, तो मैं भी इस होटल में आप सभी का इंतज़ार करूँगा।
आगे की शिक्षा-रोजगार के लिए केशव, संजय, माधव और रमेश चारों दोस्त अलग-अलग हो गए।
   माधव शहर छोड़कर आगे की पढ़ाई के लिए अपने फूफ़ा के पास चला गया था, केशव आगे की पढ़ाई के लिए अपने चाचा के पास चला गया, संजय और रमेश को शहर के अलग-अलग कॉलेजों में दाखिला मिला।
आखिरकार संजय भी शहर छोड़कर चला गया।
  दिन, महीने और साल बीत गए। अगले 20 वर्षों में उस शहर में आमूल-चूल परिवर्तन हो गए, शहर की आबादी बढ़ी, सड़कों, फ्लाईओवर ने महानगरों की सूरत बदल दी।
  अब वह होटल फाइव स्टार होटल बन गया था, वेटर दीपू अब दीपक सेठ बन गया और इस होटल का मालिक बन गया।
      बीस साल बाद, निर्धारित तिथि, 01 अप्रैल को दोपहर में, एक लग्जरी कार होटल के दरवाजे पर आई।
केशव कार से उतरा और पोर्च की ओर चलने लगा, केशव के पास अब तीन ज्वैलरी शो रूम हैं।
केशव होटल के मालिक दीपक सेठ के पास पहुँचा, दोनों एक दूसरे को देखते रहे।
दीपक सेठ ने कहा कि रमेश सर ने आपके लिए एक महीने पहले एक टेबल बुक किया था।
केशव मन ही मन खुश था कि वह चारों में से पहला था, इसलिए उसे आज का बिल नहीं देना पड़ेगा, और वह सबसे पहले आने के लिए अपने दोस्तों का मज़ाक उड़ाएगा।
एक घंटे में संजय आ गया, संजय शहर का बड़ा राजनेता व बिजनेस मैन बन गया था।
  अपनी उम्र के हिसाब से वह अब एक सीनियर सिटिज़न की तरह लग रहा था।
अब दोनों बातें कर रहे थे और दूसरे मित्रों का इंतज़ार कर रहे थे, तीसरा मित्र माधव आधे घंटे बाद आ गया।
उससे बात करने पर दोनों को पता चला कि माधव बिज़नेसमैन बन गया है।
तीनों मित्रों की आँखें बार-बार दरवाजे पर जा रही थीं, रमेश कब आएगा ?
इतनी देर में दीपक सेठ ने कहा कि रमेश सर की ओर से एक मैसेज आया है, तुम लोग चाय-नाश्ता शुरू करो, मैं आ रहा हूँ।
तीनों बीस साल बाद एक-दूसरे से मिलकर खुश थे।
घंटों तक मजाक चलता रहा, लेकिन रमेश नहीं आया।
 दीपक सेठ ने कहा कि फिर से रमेश सर का मैसेज आया है, आप तीनों अपना मनपसंद मेन्यू चुनकर खाना शुरू करें।
खाना खा लिया तो भी रमेश नहीं दिखा, बिल माँगते ही तीनों को जवाब मिला कि ऑनलाइन बिल का भुगतान हो गया है।
       शाम के आठ बजे एक युवक कार से उतरा और भारी मन से निकलने की तैयारी कर रहे तीनों मित्रों के पास पहुँचा, तीनों उस आदमी को देखते ही रह गए।
युवक कहने लगा, मैं आपके दोस्त का बेटा यशवर्धन हूँ, मेरे पिता का नाम रमेश  है।
पिताजी ने मुझे आज आपके आने के बारे में बताया था, उन्हें इस दिन का इंतजार था, लेकिन पिछले महीने एक गंभीर बीमारी के कारण उनका निधन हो गया।
उन्होंने मुझे आप लोगों से देरी से मिलने के लिए कहा, अगर मैं जल्दी निकल गया, तो वे दुखी होंगे, क्योंकि मेरे दोस्त तब नहीं हँसेंगे, जब उन्हें पता चलेगा कि मैं इस दुनिया में नहीं हूँ, तो वे एक-दूसरे से मिलने की खुशी खो देंगे।
इसलिए उन्होंने मुझे देर से आने का आदेश दिया।
 उन्होंने मुझे उनकी ओर से आपको गले लगाने के लिए भी कहा, यशवर्धन ने अपने दोनों हाथ फैला दिए।
आसपास के लोग उत्सुकता से इस दृश्य को देख रहे थे, उन्हें लगा कि उन्होंने इस युवक को पहले भी शहर में कहीं देखा है।
    यशवर्धन ने कहा कि मेरे पिता शिक्षक बने, और मुझे पढ़ा-लिखाकर कलेक्टर बनाया, आज मैं इसी शहर का कलेक्टर हूँ।
   सब चकित थे, दीपक सेठ ने कहा कि अब बीस साल बाद नहीं, बल्कि हर बीस दिन में हम अपने होटल में बार-बार मिलेंगे, और हर बार मेरी तरफ से एक भव्य पार्टी होगी।

भाइयो:-अपने दोस्त-मित्रों व सगे-सम्बन्धियों से मिलते रहो, अपनों से मिलने के लिए बरसों का इंतज़ार मत करो, जाने कब किसकी बिछड़ने की बारी आ जाए और हमें पता ही न चले।
शायद यही हाल हमारा भी है। हम अपने कुछ दोस्तों को सुप्रभात, शुभरात्रि आदि का मैसेज भेज कर ज़िंदा रहने का प्रमाण देते हैं।

 मित्रो, ज़िंदगी भी ट्रेन की तरह है जिसका जब स्टेशन आयेगा, उतर जायेगा। रह जाती हैं सिर्फ धुंधली सी यादें।

:-परिवार के साथ रहें, ज़िन्दा होने की खुशी महसूस करें.. 

सिर्फ होली या दीपावली के दिन ही नहीं अन्य सभी अवसरों तथा दिन प्रतिदिन मिलने पर भी गले लगाया करें आपकी मित्रता प्रगाढ़ ही होगी।।
*हमेशा खुश रहें स्वस्थ रहें

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