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उत्तराध्ययन जैन सूत्र की यात्रा ही मंजिल वाली यात्रा है :आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी

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सूरत। शहर के पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ जैन श्री संघ पाल स्थित श्री कुशल क्रांति खतरगच्छ भवन में युग दिवाकर खरतरगच्छपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म. सा. ने आज गुरूवार 25 जुलाई को प्रवचन में धर्म सभा को संबोंधित करते हुए कहा कि एक अनोठी यात्रा है। यात्राएं तो दुनिया में बहुत है, हम करते है लेकिन बिना मंजिल की यात्रा है। हम जो यात्रा कर रहे है वह कभी न खत्म होनेवाली यात्रा है। लगातार चलने वाली, बहने वाली यात्रा है। यहां से वहां, वहां से वापस यहां। ऐसी ही यात्राएं हमारे जिंदगी में चलती है। लेकिन यह जो यात्रा है, उत्तराध्ययन जैन सूत्र की यात्रा है यह मंजिल वाली यात्रा है, मंजिल मिलती है। अगर यात्रा होनी है, अन्य किसी यात्रा में मंजिल की कोई संभावना नहीं है। लेकिन यहा मंजिल की पूर्णता हमें प्राप्त होनी है। ऐसी यात्रा का प्रारंभ हम करने जा रहे है। उत्तराध्ययन सूत्र भगवान महावीर की अंतिम वाणी माना जाता है। परमात्मा की उत्तराध्ययन जैन सूत्र सबसे उकृष्ट वाणी है। इसका उदाहरण देते हुए आचार्य श्री ने कहा कि जब संसार में छोटे बच्चे का जन्म होता है। बालक छह महिने का हुआ, एक साल का हुआ वह लाड प्यार वह हदय के आनंद की अनुभूति उसके मां के हदय में और उसके पिता के हदय में, पूरे परिवार के हदय में। मां जितनी प्रसन्न होती है, पिता भी उतने की प्रसन्न होते है। दादा दादी का तो कहना ही क्या? बच्चा जब बोलना प्रारंभ करता है तो पूरा परिवार झूम उठता है। बच्चे का पहला शब्द जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही वृद्धजनों का अंतिम उच्चारण परिवार के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। जिंदगी में कभी भी वृद्धजनों का अपमान भूलकर भी नहीं करना चाहिए। वे परिवार बहुत भाग्यशाली होते है, जिन परिवारों में वृद्ध व्यक्ति होते है। वह अपने अंतिम समय में उनके अनुभवों का निचोड बताते है। ऐसा ही परमात्मा ने कम समय में चूने हुए शब्दों प्रयोग कर, चूने हुए विषयों का इस्तेमाल कर मंजिल दिखा दी है। मंजिल है हमारी मोक्ष, मंजिल है हमारी परम शांति शाश्वात सुख का अनुभव। वही एकमात्र हमारी मंजिल है। इस मंजिल को प्राप्त करने के लिए जो दूर दिखायी देती है, लेकिन है नहीं। मोक्ष दूर है, नहीं नजदीक, चलो तो दूर है और बैठे रहे तो दूर है। लाभार्थी परिवार में उत्तराध्ययन सूत्र वोहराना मेथीदेवी मोतीलालजी देसाई और चारित्र कथानक वोहराना
संघवी दलीचंदजी मिश्रीमलजी मावाजी मरडिया थे। आज गुरूवार को राजस्थान के करौली जिले में महावीर तीर्थ वहां श्वेताम्बर समाज के द्वारा मंदिर का निर्माण किया जा रहा। जिसके अध्यक्ष दिनेशभाई और ट्रस्ट गण का तिलक कर बहुमान किया गया।केयुप के अध्यक्ष मनोज देसाई व दिलीप भंडारी ने बताया कि गच्छाधिपति अपने 17 संत व 9 साध्वीजी महाराज के साथ नव निर्मित श्री कुशल क्रांति खतरगच्छ भवन पाल में चातुर्मासिक प्रवास कर रहे है।बड़ी संख्या में धर्मानुरागी भाई बहने धर्मध्यान,त्याग तपस्या व प्रवचन का रसपान कर रहे है।

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