वैष्णवों को अपने सेव्य स्वरूप की तुलना अन्य स्वरूप से नहीं करनी चाहिए
पुष्टीसत्संग महोत्सव में वैष्णवाचार्य गोस्वामी पीयूषबावाश्री का प्रवचन
सूरत।वैष्णवों को अपने घर में विराजमान श्री ठाकोरजी के सेव्य स्वरूप की तुलना किसी अन्य स्वरूप से नहीं करनी चाहिए या दोनों स्वरूपों के बीच कोई अंतर नहीं करना चाहिए, ऐसा श्री पुष्टिसंस्कारधाम जूनागढ़ के वैष्णवाचार्य गोस्वामी श्री पीयूषबावाश्री ने उपदेश दिया।
श्री पुष्टि संस्कारधाम सूरत समिति द्वारा श्री पुष्टि संस्कारधाम जूनागढ़ के वैष्णवाचार्य गोस्वामी श्री पीयूषबावाश्री की उपस्थिति में सूरत में चार दिवसीय पुष्टि सत्संग उत्सव का आयोजन किया गया। इस अवसर पर उपस्थित वैष्णवों को व्याख्यान देते हुए श्री पीयूषबावाश्री ने कहा कि यदि सभी तरल जीव पृथ्वी की सतह पर रहते, और कोई भक्त नहीं होते, तो भगवान को अवतार लेने की कोई आवश्यकता नहीं होती। भगवान तो भक्तों का उद्धार करने के लिए ही अवतार लेते हैं। पृथ्वी पर पुष्टि जीव है इसीलिए श्री ठाकोरजी अपने घर में सेव्य रूप में प्रकट होते हैं। श्री पीयूषबावाश्री ने कहा कि श्री ठाकोरजी हमारे घर में जिस भी रूप में प्रकट हुए हैं, उसे श्री वल्लभ की कृपा जानना चाहिए। श्री पीयूषबावाश्री ने कहा कि वैष्णवों को हमारे घर के सेव्य स्वरूप और किसी और के घर के सेव्य स्वरूप तथा किसी भी हवेली का सेव्य स्वरूप हो सभी स्वरुप मे एक समान भावना रखनी चाहिए। श्री पीयूषबावाश्री ने कहा कि यदि हम किसी भी रूप में छोटा स्वरूप-बडा स्वरूप जैसा कोई भेद करते हैं, तो हमें समझना चाहिए कि हम सच्चे अर्थों में श्री ठाकोरजी की सेवा नहीं कर रहे हैं। पुष्टि सत्संग महोत्सव के प्रथम दो दिन योगी चौक वराछा में तथा तीसरे दिन पासोदरा पाटिया में पुष्टिमार्ग परिचय विषय पर व्याख्यान हुए साथ ही पुष्टि संस्कारधाम के बच्चों द्वारा विभिन्न कला की प्रस्तुति एवं रास कीर्तन वघई का के कार्यक्रम संपन्न हुए। पुष्टि सत्संग महोत्सव के अंतिम दिन रविवार को वालक पाटिया एवं सचिन में ब्रह्मसंबन्ध दीक्षा कार्यक्रम, सचिन में व्याख्यान एवं रस कीर्तन वघई कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। इस कार्यक्रम के दौरान १५० वैष्णवों ने श्री पीयूषबावाश्री से ब्रह्मसंबंध दीक्षा प्राप्त की। इस अवसर पर पुष्टि संस्कारधाम के निर्माण कार्य में लगे नये सहयोगियों को भी सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के चारों दिन बड़ी संख्या में वैष्णव एवं ग्रामीण शामिल हुए और वचनामृत एवं रास कीर्तन का लाभ उठाया।