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अहंकार, क्रोध, ईर्ष्या को त्यागें : जीवन सार्थक हो जाएगा -- साध्वी श्री त्रिशला कुमारी जी

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साध्वी जी ने मनुष्य भव की प्राप्ति के बताए चार कारण : सरलता, विनम्रता, करुणा और सद्भावना 
अणुव्रत समिति ग्रेटर सूरत के तत्वावधान में हुआ संयम दिवस के बैनर का अनावरण
महातपस्वी अणुव्रत अनुशास्ता युग प्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री त्रिशला कुमारी जी तेरापंथ भवन, सिटीलाइट में चातुर्मासार्थ बिराज रहे हैं। साध्वी श्री जी की प्रेरक अमृतवाणी सुनने के लिए विशाल मानव समुदाय उमड़ रहा है। पूज्य गुरुदेव के निर्देशानुसार शनिवार का दिन सामायिक दिवस के रूप में मनाया जाता है। उसी प्रकार मंगलवार का दिन संयम दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया गया है। साध्वी श्री के सान्निध्य में अणुव्रत विश्व भारती के निर्देशन में एवं अणुव्रत समिति ग्रेटर सूरत के तत्वावधान में आज संयम दिवस के बैनर का अनावरण किया गया।
इस अवसर पर उपस्थित विशाल जन मेदिनी को संबोधित करते हुए साध्वी श्री त्रिशला कुमारी जी ने कहा - मनुष्य जीवन दुर्लभ माना गया है। नौ प्रकार की घाटियों को अर्थात पृथ्वी काय,अपकाय तेजस् काय, वायु काय एवं वनस्पति काय इन  पांच काय के उपरांत तीन विकलेन्द्रियां द्विन्द्रीय, त्रिन्द्रीय व चतुरिन्द्रीय एवं तिर्यंच पंचेन्द्रीय को पार करने के पश्चात मनुष्य भव की प्राप्ति होती है। मनुष्य भव आसानी से नहीं मिलता। मनुष्य भव की प्राप्ति हेतु शास्त्रों में चार कारण बताए गए हैं : 1. सरलता, विनम्रता, करुणा और सद्भावना।
     साध्वी श्री ने आगे कहा-मनुष्य के जीवन में सरलता होनी चाहिए। जिसके स्वभाव में सरलता नहीं है,जो माया करता है, छल-कपट करता है,धोखा करता है वह कभी भी सुखी नहीं हो सकता। उसे अगले भव में तिर्यंच योनि में जाना पड़ता है।जीवन में विनम्रता भी अत्यंत जरूरी है। जो व्यक्ति उद्दंड होता है अहंकार करता है वह मित्रों को भी दुश्मन बना देता है। जीवन में सफल होने के लिए अनुकंपा,करुणा,दया,भावना का विकास भी आवश्यक है। हमारी आत्मा जिस व्यवहार से दुःख की अनुभूति करती है वैसा व्यवहार हमें भी दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए। प्राणी मात्र के प्रति करुणा का भाव रखने वाला सुख शांति को प्राप्त करता है। सफलता की प्राप्ति हेतु संयम और सद्भावना पूर्ण व्यवहार जरूरी है। किसी के प्रति ईर्ष्या भाव नहीं रखना चाहिए। ईर्ष्या ऐसी आग है जिसके द्वारा दूसरा व्यक्ति तो जले या ना जले परंतु स्वयं की आत्मा जरूर जल जाती है।ईर्ष्या भाव अल्सर,पेंक्रियास विकृति,डायबिटीज, कैंसर जैसी अनेक बीमारियां भी पैदा करता है। साध्वी श्री ने जीवन चर्या में नैतिकता एवं संयम को स्थान देने की एवम् मौन साधना की भी प्रेरणा दी।
साध्वी श्री कल्पयशाजी जी ने सतरंगी तप में जुड़ने की बलवती प्रेरणा दी।अणुव्रत समिति ग्रेटर सूरत द्वारा संयम दिवस के बैनर का अनावरण किया गया।इस अवसर पर अणुव्रत विश्व भारती के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजेश सुराणा, गुजरात राज्य प्रभारी अर्जुन मेड़तवाल, राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य,अणुव्रत समिति सूरत के अध्यक्ष विमल लोढा़, पूर्व अध्यक्ष विजय कांत खटेड़,मंत्री संजय बोथरा, पदाधिकारी गण एवं कार्यसमिति सदस्य उपस्थित रहे।

 

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