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अक्षय तृतीया महोत्सव के लिए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण का नव्य ऐतिहासिक मंगल प्रवेश

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 अध्यात्म जगत के महासूर्य के प्रकाश से आलोकित हो उठी डायमंड व सिल्कसिटी सूरत

-सूरत की सड़कों पर उमड़ा श्रद्धा का सागर, अध्यात्म जगत के महासागर के दर्शन से निहाल हुए लोग

-भव्य एवं विराट स्वागत जुलूस संग भगवान महावीर यूनिवर्सिटी परिसर में पधारे महावीर के प्रतिनिधि

-अक्षय तृतीया महोत्सव सहित आचार्यश्री का यहीं होगा अष्टदिवसीय पावन प्रवा 

-शक्ति प्रदायिनी होती है शुद्ध भक्ति : महातपस्वी महाश्रमण

-स्वागत में श्रद्धालुओं ने दी अपनी भावानाओं को अभिव्यक्ति 

वेसु, सूरत।हीरे की चमक और कपड़े के व्यवसाय से दमकती, डायमण्ड व सिल्कसिटी के नाम से प्रख्यात गुजरात का सूरत शहर शनिवार को आध्यात्मिक जगत के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी की आध्यात्मिक आभा से आलोकित हो उठा। चमक भी ऐसी, जिसने भी इसे देखा, देखता ही रह गया। आध्यात्मिकता के अलौकिक तेज को प्राप्त कर सूरत की सूरत ही बदल गई। हजारों नेत्रों ने इस दृश्य को अपने दिल और दिमाग में संजोया तो कितने-कितने कैमरा, ड्रोन और मोबाइल फोन की मेमोरियों में भी यह ऐतिहासिक पल हमेशा के लिए सुरक्षित हो गया। 

लगभग 20 वर्षों के बाद सूरत की धरा को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य, युगप्रधान, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के चरणरज को प्राप्त कर निहाल हो उठी। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण शनिवार को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के अक्षय तृतीया महोत्सव के महामंगल प्रवेश के अवसर पर देखने को मिला। प्रायः वाहनों के भारी आवागमन से व्यस्त रहने वाली सूरत की सड़कें आज महाश्रमण के भक्तों के भक्ति के सागर से ओतप्रोत बनी हुईं थी। मानों ज्ञान और अध्यात्म के महासागर से मिलन को भक्तों का सागर उमड़ रहा था। जहां तक दृष्टि जा सकती थी, श्रद्धालुओं का सैलाब लहराता दिखाई दे रहा था। शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की अभिवंदना में केवल तेरापंथ समाज के लोग ही नहीं, सूरत का जन-जन उमड़ता चला आ रहा था। 

प्रातःकाल सूरत के पर्वतपाटिया स्थित तेरापंथ भवन से तेरापंथ धर्मसंघ के अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल प्रस्थान किया। प्रस्थान से पूर्व ही सूरतवासी अपने आराध्य के सान्निध्य में पहुंच चुके थे। गतिमान ज्योतिचरण का अनुगमन करते श्रद्धालु साथ चले तो मानों ऐसा प्रतीत हुआ कि अक्षय तृतीया महोत्सव के प्रवेश की रैली ही वहीं से आरम्भ हो गई। समय के साथ बढ़ता जनता का सैलाब सूरत की चौड़ी सड़कों को आप्लावित बनाए हुए था। भक्तों द्वारा उच्चरित बुलंद जयघोष ने सूरत की मिलों के शोर को गायब ही कर दिया था। चारों ओर आध्यात्मिक आलोक प्रसारित हो रहा था। भक्तों के मध्य गतिमान महातपस्वी के दर्शन को लालायित लोग विहार के मार्ग के साथ बिल्डिंगों के खिड़कियों, ओवरब्रिज के ऊपर से निहारते देखे जा सकते थे। जन-जन पर आशीषवृष्टि करते आचार्यश्री निरंतर गंतव्य की ओर गतिमान थे। लगभग बीस वर्षों बाद अपने आराध्य को अपने नगर में पाकर सूरतवासियों का उत्साह अपने चरम पर था। श्रद्धा के इस लहराते सागर की अध्यात्म जगत के महासागर से मिलन की होड़ में ग्यारह किलोमीटर की दूरी कब पूर्ण पता ही नहीं चला। 

जन-जन को अपने दोनों करकमलों से आशीष प्रदान करते हुए आचार्यश्री भगवान महावीर यूनिवर्सिटी परिसर में बने भगवान महावीर इण्टरनेशनल स्कूल के भवन में पधारे। आचार्यश्री का यहां अक्षय तृतीया महोत्सव सहित अष्टदिवसीय प्रवास निर्धारित है। 

इस परिसर में प्रवास कक्ष के निकट ही बने भव्य एवं विशाल महावीर समवसरण श्रद्धालुओं की उपस्थिति से मानों छोटा प्रतीत हो रहा था। महावीर समवसरण से भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित श्रद्धालुजनों को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि अध्यात्म की साधना में भक्ति बहुत महत्त्व है। अपने आराध्य के प्रति शुद्ध भक्ति शक्ति प्रदायिनी होती है। भक्ति में दिखावा न हो, भक्ति का मूल प्राण तत्त्व भाव होता है। भक्ति में विनय, समर्पण और निःशर्तता हो तो भक्ति जीवन को मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करने वाली बन सकती है। भक्ति अथवा सर्पण व्यक्तिपरक भी हो सकता है और आदर्शपरक भी हो सकता है। अपने पूर्वाचार्यों, तीर्थंकरों आदि के प्रति भक्ति और समर्पण व्यक्तिपरक और आगम और उनके सिद्धान्तों और तीर्थंकरों की वाणी प्रति भक्ति और समर्पण आदर्शपरक होती है। 

आज अक्षय तृतीया महोत्सव के लिए आना हुआ है। कितने-कितने लोग वर्षीतप की साधना के द्वारा भगवान ऋषभ के प्रति अपने भक्ति भाव को समर्पित करते हैं। आदमी को अपने भीतर भक्ति के भावों को पुष्ट बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में आध्यात्मिक भक्ति बनी रहे। 

आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज सूरत के मुख्य प्रवास स्थल में आए हैं। गुरुदेव आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के साथ बीस वर्ष पूर्व आना हुआ था। यहां मुनिश्री उदितकुमारजी स्वामी आदि संतों तथा कुछ साध्वियों के सिंघाड़ों से मिलना हुआ है। कितनी समणियां देश-विदेश से भी आई हैं, मुमुक्षुबाइयां भी उपस्थित हैं। सभी में अच्छा विकास होता रहे। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी उपस्थित जनमेदिनी को उद्बोधित किया। मुनि उदितकुमारजी ने अपनी आस्थासिक्त हर्षाभिव्यक्ति दी। 

आचार्यश्री के स्वागत में अक्षय तृतीया व्यवस्था समिति-सूरत के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा तथा वेसु विस्तार के कॉर्पोरेटर श्री हिमांशु भाई राउलजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ समाज-सूरत ने स्वागत गीत का संगान किया। सूरत ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। तेरापंथ किशोर मण्डल-सूरत के किशोरों ने आचार्यश्री के अभिनंदन में 108 उपवास का संकल्प स्वीकार कर आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। 

आचार्य महाश्रमणजी के हाथों से 1 हजार छात्र पदवी ग्रहण और 15 हजार छात्र नशामुक्ति का संकल्प लेंगे
आचार्य महाश्रमणजी का भव्य स्वागत किया गया
सूरत। शनिवार की सुबह नगर पधारे आचार्य महाश्रमणजी पर्वत पटिया होते हुए अणुव्रत द्वार पहुंचे। यहां से विशाल रैली कैनाल रोड होते हुए भगवान महावीर विश्वविद्यालय परिसर पहुंची। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के ट्रस्टी, कर्मचारियों एवं शहर के जैन अग्रणियों ने आचार्य महाश्रमणजी का भव्य स्वागत किया।


इस मौके पर प्रोफेसर संजय जैन ने कहा कि आचार्य महाश्रमणजी का भव्य स्वागत किया गया। यह हमारा सौभाग्य है कि आचार्य श्री महाश्रमणजी 22 अप्रैल से अक्षय तृतीया पर भगवान महावीर विश्वविद्यालय के प्रांगण में विराजमान रहेंगे। 23 अप्रैल को 1200 से अधिक तपस्वियों का पारना विधि होगी। 27 अप्रैल को 1 हजार छात्र आचार्यश्री के हाथों दीक्षांत समारोह में उपाधि ग्रहण करेंगे।


इस अवसर पर परिसर के 15 हजार बच्चे अपने जीवन में नशामुक्त होने का संकल्प लेने जा रहे हैं। आने वाले दिनों में आचार्यश्री के व्याख्यान और दर्शन का लाभ शहरवासियों को मिलेगा। अनिल जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि महाश्रमणजी का भव्य स्वागत किया गया. अगले नौ दिनों तक उनकी मौजूदगी में विभिन्न कार्यक्रम होंगे। 27 को दीक्षांत समारोह का अहम कार्यक्रम होगा। हम सौभाग्यशाली हैं कि आचार्य श्री 22 वर्ष बाद सूरत आए हैं।

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