सूरत। राजस्थान के जोधपुर जिले के शेरगढ़ निवासी और जैन समाज के प्रतिष्ठित सुश्रावक श्री स्वरूपचंद सा लुणीया का तिविहार संथारा आज तीसरे दिन भी समाधि पूर्वक गतिमान है।
22 जनवरी 2025 को सुबह 11 बजे, उनकी प्रबल भावना के अनुरूप तिविहार संथारा का पच्छखान करवाया।इस दौरान जैन तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री चंदनबालाजी और साध्वी श्री मधुबालाजी ने स्वयं पधारकर मंगल पाठ सुनाया व लुणीया जी के आध्यात्मिक जीवन की मंगलकामना की और उन्हें आत्मशुद्धि और मोक्ष मार्ग पर दृढ़ रहने की प्रेरणा दी। उन्होंने अपने आशीर्वचनों में संथारा की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए इसे जीवन का सबसे पवित्र और आध्यात्मिक निर्णय बताया।
इस संथारा के दौरान स्थानीय जैन समाज के श्रावक-श्राविकाओं ने ज्ञान आराधना और धार्मिक अनुष्ठानों को निरंतर जारी रखा है। उनकी श्रद्धा और समर्पण की भावना ने समुदाय में एक प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत किया है।
जैन धर्म में संथारा को जीवन के अंतिम चरण में एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक साधना के रूप में देखा जाता है। यह संकल्प आत्मा की शुद्धि और संसार के बंधनों से मुक्त होने का एक साधन है।
स्थानीय जैन संघों और समुदाय के श्रद्धालु लगातार प्रार्थना और धर्म-चिंतन में संलग्न हैं, ताकि श्री स्वरूपचंद सा लुणीया के इस आध्यात्मिक यात्रा में पूर्णता प्राप्त हो।