सूरत में सन 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद भारत की कर प्रणाली में बड़ा बदलाव हुआ। इसने कारोबारियों और टैक्स सिस्टम को नई दिशा दी, लेकिन इसका सबसे बड़ा असर छोटे और मंझले व्यापारियों के लिए काम करने वाले एकाउंटेंट्स पर पड़ा है। बार-बार बदलते नियम और रिटर्न फाइल करने की जटिल प्रक्रियाओं ने उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
जीएसटी लागू होने के बाद से नियमों में लगातार बदलाव हो रहे हैं। जीएसटीआर-1, जीएसटीआर-3बी, वार्षिक रिटर्न, जीएसटीआर-2बी का मिलान और अब इनवॉइस मैचिंग सिस्टम जैसी नई प्रक्रियाओं ने एकाउंटेंट्स के काम का दायरा बढ़ा दिया है। महीने का अधिकतर समय रिटर्न फाइलिंग और उससे जुड़े अन्य कार्यों में ही खर्च हो जाता है। इसके अलावा सरकार की ओर से लगातार नए नोटिफिकेशन और कानूनों का पालन करना भी इनके लिए चुनौतीपूर्ण हो गया है।
रिटर्न फाइलिंग की इस जटिल प्रक्रिया के चलते एकाउंटेंट्स के निजी जीवन पर भी असर पड़ रहा है। वे अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारियों और परिवार के लिए समय नहीं निकाल पा रहे हैं। हर महीने का अंत और रिटर्न फाइल करने की अंतिम तिथि उनके लिए किसी जंग से कम नहीं होती।
जीएसटी लागू होने के आठ साल पूरे हो चुके हैं। इस दौरान हजारों नियम और नोटिफिकेशन बदले गए, लेकिन एकाउंटेंट्स की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। उनके काम का दबाव बढ़ता गया, लेकिन उनकी फीस में कोई उचित वृद्धि नहीं हुई। सरकार की ओर से उनके लिए किसी ठोस पहल का अभाव साफ नजर आता है।
अब समय आ गया है कि सरकार जीएसटी प्रक्रिया को सरल और स्थिर बनाए। एकाउंटेंट्स के काम के अनुसार उनकी फीस का उचित निर्धारण हो। जीएसटी पोर्टल को और अधिक उपयोगकर्ता-अनुकूल बनाया जाए और सरकार की ओर से एकाउंटेंट्स के लिए जागरूकता अभियान और तकनीकी सहायता प्रदान की जाए।
जीएसटी ने भारतीय कर प्रणाली को आधुनिक बनाया, लेकिन इसने सबसे अधिक बोझ छोटे और मंझले स्तर के एकाउंटेंट्स पर डाला है। यह जरूरी है कि उनकी समस्याओं को गंभीरता से लिया जाए और उन्हें सम्मानजनक कार्य परिस्थितियां प्रदान की जाएं।