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वृद्धाश्रम भी बन जाए धर्माश्रम : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 

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-शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने किया लगभग 13 कि.मी. का विहार 

-मघरीखाडा गांव में स्थित युग शक्ति वृद्धाश्रम पूज्यचरणों से हुआ पावन 

-धर्म, ध्यान, साधना में समय लगाने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित 

02.01.2025, गुरुवार, मघरीखाडा, सुरेन्द्रनगर (गुजरात) :

    आर्थिक रूप से समृद्ध राज्य गुजरात को आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग सौराष्ट्र क्षेत्र में गतिमान हैं। गुरुवार को प्रातःकाल आचार्यश्री ने डोलिया से मंगल प्रस्थान किया। अंग्रेजी नववर्ष के महामंगलपाठ के लिए जुटे श्रद्धालु आज भी अपने आराध्य का दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त कर रहे थे। जन-जन पर आशीष बरसाते हुए आचार्यश्री अगले गंतव्य की ओर आगे बढ़े। लगभग 13 कि.मी. का विहार कर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी मघरीखाडा में स्थित युग शक्ति वृद्धाश्रम में पधारे। जहां उपस्थित लोगों ने आचार्यश्री का सादर स्वागत किया। 

    वृद्धाश्रम परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल मार्गदर्शन प्रदान करते हुए कहा कि क्षमा को उत्तम धर्म कहा गया है। सहन कर लेना, सहिष्णुता रखना बहुत महत्त्वपूर्ण बात होती है। मन के प्रतिकूल कोई स्थिति आ जाए, कभी कोई घटना घट जाए, उसे सहन कर लेना सहिष्णुता की बात होती है। परिवार में, समाज में कभी बड़े की बात छोटा सह लेता है और कभी छोटे की बात बड़ा सह लेता है तो परिवार और समाज में खूब शांति रह सकती है। सहिष्णुता नहीं है तो जीवन में कठिनाई आ सकती है, टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है। धार्मिक साधना में भी आदमी को अनुकूल-प्रतिकूल दोनों ही परिस्थितियों में समता भाव रखने का प्रयास करना चाहिए सहिष्णुता का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके, साधक को अपनी साधना में समय लगाने का प्रयास करना चाहिए। 

    आदमी को धर्म और साधना का कार्य करने का प्रयास करना चाहिए। यदि कोई वृद्ध व्यक्ति कोई सलाह दे तो उसको कोई ध्यान से न सुने तो भी उसे दुःखी नहीं होना चाहिए। उसे उसके लिए तनाव नहीं रखना चाहिए और उसका दुःख भी नहीं रखना चाहिए। वृद्धाश्रम और वृद्धावस्था में कैसे चित्त में समाधि और शांति रहे, इसका प्रयास होना चाहिए। जितना हो सके, अधिक से अधिक समय धर्म-ध्यान में लगाने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके, दिन में एक, दो अथवा तीन सामायिक भी हो जाए तो अच्छा धर्म का लाभ हो सकता है। वृद्धाश्रम में सांसारिक बन्धनों से मुक्त होकर धर्म में समय लगाने का प्रयास करना चाहिए। जितना हो सके, धर्म, ध्यान, साधना में, परमात्मा में लगाने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार यह वृद्धाश्रम भी धर्माश्रम बना रहे, और वृद्धों में खूब शांति, समाधि बनी रहे। 

    मंगल प्रवचन के उपरान्त वृद्धाश्रम से संबंधित श्री अल्पेशभाई मोदी ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी।

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