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साधना से सुख की प्राप्ति संभव : सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमण

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-10 कि.मी. का विहार कर शांतिदूत पहुंचे तारापुर सार्वजनिक हाईस्कूल

-आचार्यश्री तुलसी के सौवें दीक्षा दिवस पर आचार्यश्री ने अर्पित की विनयांजलि

-अहमदाबाद से आए श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री के समक्ष दी अपनी भावनाओं को प्रस्तुति 

तारापुर,आनंद।मानेजवासियों को अपने मंगल दर्शन और मंगलवाणी से मंगलमय बनाने के उपरान्त जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना के साथ मानेज से गतिमान हुए। गुरुवार को मानेज में आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन धर्म के कई आचार्यों का सुखद मिलन भी हुआ जो जैन धर्म के लिए काफी प्रभावक भी रहा। 

मार्ग में आने वाले गांव के लोगों को आचार्यश्री के दर्शन और आशीर्वाद का लाभ प्राप्त हुआ। गुजरात के पग-पग पर आध्यात्मिकता का आलोक बांटते हुए तेरापंथ के देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग दस किलोमीटर का विहार कर तारापुर में स्थित तारापुर सार्वजनिक हाईस्कूल में पधारे। स्कूल से संबंधित लोगों ने तथा अहमदाबाद से आए श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया। वहीं स्कूल के विद्यार्थी भी अपनी पारंपरिक वेशभूषा में सर पर कलश लेकर आचार्यश्री का अभिनंदन किया।

स्कूल परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि जैन धर्म में चौबीस तीर्थंकरों का उल्लेख मिलता है। वर्तमान अवसर्पिणी के पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभ और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर हुए। आज से ढाई हजार वर्ष पहले भगवान महावीर विराजमान थे। जैन धर्म में सबसे बड़ा स्थान तीर्थंकर का होता है। सोलहवें तीर्थंकर भगवान शांतिनाथ हुए। आदमी भी अपने जीवन में शांति चाहता है। सामान्य आदमी भी अपने जीवन में शांति अथवा सुख और सुविधा को चाहता है। 

सुख का संबंध भीतर से अर्थात् कर्म-निर्जरा से है और सुविधा भौतिकता से जुड़ी हुई है। सुख अध्यात्म से जुड़ा हुआ है तो सुविधा भौतिक दुनिया से आबद्ध है। अध्यात्म की साधना आदमी को आंतरिक सुख की प्राप्ति होती है और भौतिक साधनों से सुविधा की प्राप्ति हो सकती है। साधना से प्राप्त होने वाला आंतरिक सुख ही वास्तविक सुख होता है। जिस प्रकार साधु अपना सर्वस्व छोड़कर साधनारत हो गए हैं, वे कितने सुखी हैं। उनके पास पदार्थ न होते हुए भी साधना में रत होने के कारण आंतरिक सुख निरंतर बने रहते हैं। भौतिक साधन सुविधा दे सकते हैं, लेकिन भौतिक साधनों से सुविधा लेने वाला आदमी मन से दुःखी भी हो सकता है। 

भीतर के सुख की प्राप्ति के लिए अध्यात्म की साधना की आवश्यकता है। भय, क्रोध, लालच, अहंकार, हिंसा, चिंता आदि से मुक्त होकर साधना करने से आध्यात्मिक सुखी की प्राप्ति संभव हो सकता है। सामान्य आदमी कषायों से इतना आबद्ध होता है कि उसे अपने अंतर छिपे वास्तविक सुख का अवलोकन भी नहीं कर पाता। भीतर के सुख की प्राप्ति के लिए आदमी को अपने जीवन में आध्यात्म की साधना का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। मोह की चेतना को कम करने का प्रयास करना चाहिए। जहां तक संभव हो आदमी को अपने भीतर संतोष के भाव का विकास करने का प्रयत्न करना चाहिए। जितना हो सके, त्याग, तपस्या आदि के क्षेत्र में भी गति रखने का प्रयास हो। गुस्से पर नियंत्रण रखना, निर्भीकता, ईमानदारी जीवन में रहे तो आदमी कितना सुखी रह सकता है। 

आचार्यश्री ने गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी के सौवें दीक्षा दिवस के संदर्भ में पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि परम पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी ने अपने जीवन के बारहवें वर्ष में साधु दीक्षा स्वीकार कर ली थी। आज उनकी दीक्षा का सौवां वर्ष प्रारम्भ हो रहा है। मैं उनके प्रति अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति अर्पित करता हूं। आचार्यश्री ने विद्यार्थियों व विद्या संस्थान को भी मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। 

तारापुर नर्वणी मण्डल की ओर से श्री भूपेन्द्रभाई पटेल व स्कूल के प्रिंसिपल श्री परेशभाई पटेल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। अहमदाबाद चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री अरविंद संचेती ने अपनी अभिव्यक्ति दी। अहमदाबाद तेरापंथ समाज ने गीत का संगान किया। 

 

 

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