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सत्संस्कारों के विकास का हो प्रयास : महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण

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स्वामीनारायण संप्रदाय के उद्गम स्थली में पधारे तेरापंथ के गणराज

-स्वामीनारायण संप्रदाय के संतों व अनुयायियों ने शांतिदूत का भव्य स्वागत

-12 कि.मी. का विहार कर बोचासन में स्वामीनारायण मंदिर में पधारे युगप्रधान आचार्यश्री

बोचासन,आनंद।गुजरात की धरा पर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ बुधवार को गुजरात के आनंद जिले में स्थित बोचासन में स्थित स्वामीनारायण मंदिर परिसर में पधारे तो दो परंपराओं के मिलन का अद्भुत और नयनाभिराम दृश्य उत्पन्न हो उठा। बोचासन वह स्थान है, जहां से स्वामीनारायण संप्रदाय का उद्गम हुआ। बी.ए.पी.एस. (बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था) के उद्गमस्थली पर स्वामी नारायण संप्रदाय के स्वामीजी सिंह उनके अनेकानेक शिष्यों में आचार्यश्री का भावभिना स्वागत-अभिनंदन किया। दो संप्रदायाओं के प्रमुख संतों के मिलन का प्रसंग दोनों संप्रदाय के अनुयायियों को अत्यधिक हर्षविभोर बना रहा था। जयकारों से वातावरण गूंज रहा था। आचार्यश्री अपने एक दिवसीय प्रवास हेतु इस संस्था के परिसर में पधारे। 

इसके पूर्व युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी बोरसद गांव से बुधवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में प्रस्थान किया। स्थानीय ग्रामीण जनता व मार्ग में दर्शन करने वाले लोगों पर आशीष बरसाते हुए आचार्यश्री अगले गंतव्य की आगे बढ़ते जा रहे थे। जैसे-जैसे बोचासन निकट होता रहा था, स्वामीनारायण संप्रदाय के लोग भी आचार्यश्री की अगवानी में उपस्थित होते जा रहे थे। सूरत चतुर्मास के दौरार उपस्थित स्वामीनारायण संपद्राय के संतों ने अपने इस उद्गमस्थल पर पधारने की प्रार्थना की थी, वह प्रार्थना मानों आज फलीभूत होने जा रही थी। लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री बोचासन में स्थित स्वामीनारायण मंदिर परिसर में पधारे। 

कुछ समय उपरान्त ही युगप्रधान आचार्यश्री के साथ स्वामी नारायण संस्था बोचासन के प्रमुख स्वामीजी मंचासीन हुए और मंगल प्रवचन कार्यक्रम का शुभारम्भ हो गया। सम्मुख उपस्थित दोनों संप्रदायों के श्रद्धालु जनता को सर्वप्रथम शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए कहा कि हमारे जीवन में आत्मा नाम का स्थाई तत्त्व है। इसके संदर्भ में कहा गया है कि आत्मा बार-बार जन्म व मृत्यु करती रहती है। आत्मा मूल तत्त्व है। इसके साथ शरीर भी है तो वाणी की शक्ति भी है तथा मन की शक्ति भी होती है। मन है तो चिंतन की बात भी है। आदमी मन से चिंतन भी करता है। कई बार अप्रशस्त चिंतन से दुःखी भी बन सकता है। मन ही बंधन का कारण भी बनता है और मन से ही मुक्ति की साधना होती है। इसलिए मन बंधन और मुक्ति दोनों का कारण बन सकता है। 

इसलिए आदमी को अच्छा देखने, अच्छा सुनने, अच्छा सोचने अच्छा बोलने और अच्छा कार्य करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने जीवन में बुरे से बचाव और अच्छे से लगाव रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने संस्कारों को भी पुष्ट बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के भीतर अच्छे और बुरे दोनों संस्कार होते हैं। इसलिए आदमी को असत् संस्कारों को दूर करने का और सत्संस्कारों को पुष्ट बनाने का प्रयास करना चाहिए। 

आचार्यश्री ने जैन धर्म, जैन धर्म की अनेक परंपराओं के साथ तेरापंथ धर्मसंघ के प्रारम्भ और पूर्वाचायों के विषय में जानकारी देते हुए तेरापंथ के पंच महाव्रतों का भी वर्णन किया। आचार्यश्री ने कार्यकर्ता कैसा होना चाहिए, इस संदर्भ में प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि कार्यकर्ता जो सुख-दुःख को गौण कर परार्थ के लिए पुरुषार्थ करने वाला कार्यकर्ता होता है। आध्यात्मिक-धार्मिक कार्य, दूसरों का कल्याण और समर्पण की भावना से ओतप्रोत होते हैं। 

आज आपके यहां आना हुआ है। हमारे आचार्यश्री महाप्रज्ञजी और प्रमुख स्वामीजी के साथ दिल्ली में प्रोग्राम हुआ था। आप सभी संतों से मिलना हुआ, महंतस्वामीजी के प्रति भी हमारी आध्यात्मिक मंगलकामना है। बी.ए.पी.एस. की ओर से वेदघ्नस्वामीजी ने आचार्यश्री को एक पेंटिंग सहित अनेक साहित्य उपहृत की गई। तेरापंथ समाज की ओर से भी वेदघ्नस्वामीजी को अनेक साहित्य उपहृत किया गया। आचार्यश्री के मंगलपाठ से कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। 

 

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