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अनासक्त रहने का हो प्रयास : महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण

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-11.5 कि.मी. की यात्रा कर शांतिदूत पहुंचे हाथीपुरा गांव

-उड़ान पब्लिक स्कूल पूज्यचरणों से बना पावन

-वर्ष 2027 में श्रीगंगानगर अंचल की यात्रा करेंगे युगप्रधान आचार्यश्री

हाथीपुरा,वड़ोदरा।जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अनुशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ अब भुज-कच्छ की दिशा में गतिमान हैं भुज में तेरापंथ धर्मसंघ का महामहोत्सव मर्यादा महोत्सव घोषित है। गुजरात का यह क्षेत्र ज्योतिचरण के स्पर्श से पहली बार ज्योतित होगा। मर्यादा महोत्सव की व्यवस्थाओं में श्रद्धालुजन पूर्ण श्रद्धा के साथ जुटे हुए हैं। सभी मानवता के मसीहा के दर्शन को लालायित हैं।  इसके पूर्व आचार्यश्री राजकोट आदि क्षेत्रों में भी पधारेंगे। 18 दिसंबर को बोचासन में प्रवास सम्भावित है। जहां स्वामीनारायण संप्रदाय का प्रमुख केन्द्र भी माना जाता है। 

सोमवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कोयली गांव से मंगल प्रस्थान किया। प्रातःकाल में हल्की ठंड होती है, किन्तु दिन चढने के साथ ही धूप तीखी हो जाती है। आचार्यश्री करीब साढे ग्यारह किलोमीटर का विहार कर हाथीपुरा गांव में स्थित उड़ान पब्लिक स्कूल में पधारे। स्कूल आदि से संबंधित लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया। 

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी जीवन जीता है। जीवन जीने के पदार्थों का उपयोग भी करना पड़ता है। सामाजिक व पारिवारिक जीवन में अनेक व्यक्तियों के जीवन जीना होता है। जीवन जीने के लिए प्रवृत्ति भी करनी होती है। जीवन जीने के लिए भोजन, पानी, अग्नि, आदि-आदि अनेक रूपों में कार्य करना होता है। समस्त सांसारिक कार्य करते हुए, पदार्थों का उपयोग करते हुए आदमी यह विचार करे कि हमारी आत्मा ज्यादा से ज्यादा कैसे पवित्र रह सके। इसके लिए शास्त्र में प्रेरणा प्रदान की गई कि आदमी को अनासक्ति की चेतना का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। उदाहरण दिया गया कि जिस प्रकार कमल का पत्ता जल में रहते हुए भी उसका पत्ता प्रायः जल से अलग दिखाई देता है, रहता है। उसी प्रकार आदमी को भी सांसारिक जीवन में रहते हुए, पारिवारिक जीवन जीते हुए भी, व्यापार-धंधा करते हुए भी इनसे निर्लिप्त रहने का प्रयास करे। 

कपड़ा पहने, भोजन करे, मकान में रहें, अथवा जो कुछ भी करें, किन्तु उसके प्रति होने वाली आसक्ति से बचने का प्रयास करना चाहिए। पदार्थ के प्रति आसक्ति, स्वाद के प्रति आसक्ति का भाव बंधन का कारण बन सकता है। इसलिए आदमी को अनासक्ति की चेतना का विकास करना चाहिए। बन्धन से मुक्त रहने के लिए अनासक्ति की साधना करने का प्रयास करना चाहिए, यह काम्य है। आसक्ति जितनी ज्यादा होती है तो आदमी पापाचरण भी कर लेता है। ज्यादा धन की लालसा हो तो आदमी चोरी, धोखा, बेइमानी कर लेता है। पापाचार आदमी को दुर्गति की ओर ले जाने वाले हो सकते हैं। इसलिए आदमी को अनासक्त रहने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ क्षेत्र में यात्रा करने का फरमाया। विद्यालय के प्रिंसिपल श्री मैनेज भाई ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। 

 

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