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मनुष्य को भाव तारता है, कभी अपने भावों को खंडित नहीं होने दें : स्वामी गोविंददेव गिरिजी

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- शिव महापुराण कथा की पूर्णाहुति
सूरत। शहर के वेसू कैनाल रोड स्थित राजहंस कॉस्मिक में चल रही शिव महापुराण कथा के पूर्णाहुति के सातवें दिन रविवार को स्वामी गोविंददेव गिरिजी महाराज ने भगवान शिव जी की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि शिव के अवतार असंख्य है। आकाश से गिरने वाले जल कणों को कोई किन नहीं सकता है। आकाश के तारों को कोई गिन नहीं सकता है। उसी प्रकार अपने भक्तों की रक्षा के लिए और विभिन्न लीलाओं के लिए भगवान ने जो स्वरूप धारण कर लिया, वह अवतार कहलाया। हनुमान की आराधना रूद्र की आराधना है, साक्षात शिवजी की आराधना है।  बारह ज्योतिलिंग के अलावा अन्य का भी महत्व उतना ही है। उत्तम तपस्वियों की वाणी में बल होता है। सोमनाथजी के बारे मे कहा कि सोम का अर्थ है ईश्वर। चंद्र ने जिनकी आराधना की ऐसे प्रभु। संसार में आर्य ही थे, सारे संसार का सनातन ही धर्म था। सनातन धर्म का मूल तत्व है चैतन्य सर्वत्र है। संसार में अपूज्य कुछ भी नहीं। जहां पर आपका भाव होगा वहां पर आपकों अनुभूति होगी। मनुष्य को भाव तारता है, इसलिए अपने भाव को खंडित नहीं होने देना चाहिए। आज कथा के पूर्णाहुति पर कथा के मनोरथी ओमप्रकाश झुनझुनवाला ने कथा को सफल बनाने के लिए सभी का आभार व्यक्त किया। महाप्रसादी का आयोजन किया गया। जिसमें बड़ी तादाद में भक्तों ने महाप्रसाद का लाभ लिया।

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