-हिंसात्मक मनोरंजन से बचने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
-दीपावली के संदर्भ तेले के अनुष्ठान से जुड़े लोगों को आचार्यश्री ने कराया प्रत्याख्यान
वेसु, सूरत।सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति जैसे मानवीय मूल्य संकल्पों के माध्यम से जन-जन के मानस को अभिसिंचन प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी का डायमण्ड व सिल्क नगरी सूरत में वर्ष 2024 भव्य चतुर्मास भगवान महावीर युनिवर्सिटि के परिसर में बने भव्य एवं विशाल संयम विहार परिसर में हो रहा है। तापी नदी के तट पर स्थित इस नगरी में ज्ञान की गंगा प्रवाहित कर मानों जन-जन के मानस को विशुद्ध बना दिया हो।
बुधवार को महावीर समवसरण में उपस्थित भक्तिमान श्रद्धालु जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि हिंसा के संदर्भ में बताया गया है कि आसक्तिमान मनुष्य आमोद-प्रमोद के लिए भी जीवों का वध कर हर्षित होता है। दुनिया में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन की स्थिति भी देखने को मिलता है। दीपावली का समय भी हर्ष, उल्लास, उमंग का अनुभव कराने वाला हो सकता है। दीपावली के आते ही खान-पान, मिठाईयां, बाजारों की सजावट, पटाखे आदि के माध्यम से आदमी अपने उल्लास को प्रदर्शित करता रहता है।
यहां आयारो में हिंसा को भी मनोरंजन का साधन बताया गया है। मनोरंजन भी दो प्रकार का होता है-सात्विक मनोरंजन और तामसिक मनोरंजन। हालांकि मनोरंजन भी बड़ी बात नहीं होती, अपनी आत्मा में रमण करना बड़ी बात होती है। मनोरंजन के कई रंग दुनिया में देखने को मिलते हैं। मनो-विनोद की बात होती है। कई लोग ऐसे भी होते हैं जो काव्य, शास्त्र की बातों से करते हैं। तत्त्वज्ञान, पहेली आदि के माध्यम से भी विनोद किया जाता रहा है। ज्ञानवर्धक पहेलियां भी विनोद का माध्यम बनती हैं। छोटे बच्चों के लिए आज तो बहुत ही मनोरंजन की स्थिति बन गयी है। एक सात्विक स्तर का विनोद है तो दूसरा असात्विक मनोरंजन होता है। असात्विक मनोरंजन में किसी, किसी जीव को कष्ट देते हैं, जानवरों की प्रतिस्पर्धा कराते हुए भी मनोरंजन करते हैं, ऐसा मनोरंजन अत्यंत असात्विक मनोरंजन होते हैं। ऐसे लोगों को शास्त्रकार ने अज्ञानी कहा है।
बिना मतलब मनोरंजन के लिए प्राणियों की हिंसा करना असात्विक स्तर का मनोरंजन हो सकता है। आदमी को अपने जीवन में यह ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए कि जीवन में कभी भी असात्विक मनोरंजन से बचने का प्रयास करना चाहिए। सात्विक मनोरंजन, ज्ञानवर्धक मनोरंजन तो फिर भी किया जा सकता है, किन्तु हिंसा से जुड़े हुए मनोरंजन से बचने का प्रयास करना चाहिए। दीपावली का अवसर है। ऐसे में पटाखे भी मनोरंजन का विषय बनते हैं, लेकिन पटाखों से कहीं हिंसा न हो जाए, इसका ध्यान रखने का प्रयास करना चाहिए और जहां तक संभव हो सके पटाखों का संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। दीपावली के संदर्भ में तेले के रूप में तप करना आदि तो दीपावली का आध्यात्मिक रूप है।
मानव जीवन में शरीर की स्वस्थता भी एक प्रकार का धन है। मन की स्वस्थता भी धन है और आत्मा की निर्मलता भी बहुत बड़ा धन है। आचार्यश्री ने सम्मुख बैठी मुमुक्षु बाइयों को मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए जहां तक संभव हो कर्म निर्जरा हो, जप, तप, आदि के माध्यम से कर्मनिर्जरा का प्रयास करने का प्रयास करना चाहिए। कर्म रूपी पटाखों को छोड़ने का प्रयास करना चाहिए। धनतेरस है तो स्वास्थ्य रूपी धन अच्छा रहे। मन प्रसन्न रहे, शांति में रहे और आत्मा निर्मल रहे तो माना जा सकता है कि आदमी के पास बहुत बड़ा धन है। इसलिए मुमुक्षु और बोधार्थी बाइयां भी अपने जीवन में धर्म के धन को प्राप्त करने का प्रयास करें। सद्गुण, तपस्या, ज्ञान, साधना, जप आदि आध्यात्मिक धन से स्वयं को धनवान बनाने का प्रयास करना चाहिए।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने दीपावली के संदर्भ में तेले के अनुष्ठान के अंतर्गत उपवास स्वीकार करने वालों को तपस्या का प्रत्याख्यान कराते हुए मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। तदुपरान्त साध्वीवर्याजी सम्बुद्धयशाजी ने उपस्थित जनता को प्रतिबोधित किया। मुनि हितेन्द्रकुमारजी ने आचार्यश्री भिक्षु के जीवन के संदर्भ में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। उपासक श्री प्रभुभाई मेहता ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।