सूरत। श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन पाल में युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म सा के निश्रा में भव्य चतुर्मास हो रहा है। आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी ने 16 दिवसीय सूरि मंत्र की साधना का प्रारंभ किया है। सूरिमंत्र की इस पांचवीं पीठिका का समापन 20 अक्टूबर को प्रातः बजे महामांगलिक के साथ होगा।
मनितप्रभ म. सा. ने बुधवार 9 को प्रवचन में कहा कि सच्चा अच्छा लगा तो मोक्ष है और सच्चा अच्छा नहीं लगा तो चार गतियों में परिभ्रमण है। आचार्य समय दर्शन के बिना हो नहीं सकता। वहीं ज्ञान काम का है जो समयदर्शन हो। समयदर्शन बिना का ज्ञान मिथ्या है। चारित्र भी उसकी का शुद्ध होता है, जिसमें समयदर्शन होता है। चारित्र भी तप किए बिना खिलता, निखरता नहीं है। मन चंचल होने पर क्रोध, माया, चिड़चिड़ापन जैस दुगुण आएंगे। किसी में रूप होता है लेकिन संस्कार नहीं होते है और किसी में संस्कार होते है लेकिन रूप नहीं होता है।
मौलिकप्रभ म. सा. ने प्रवचन में कहा कि संसार में जिसका परमात्मा गुरूभगवंतों पर विश्वास नहीं है, वह विश्वास का पात्र नहीं रहेगा। हमारा परिचय हमेशा पीठ के पीछे होता है, सामने हमेशा मुखोटा होता है। धन को पाकर धनवान हो सकते है, लेकिन धर्म को पाकर धनवान होना जरूरी है।